कङ्क
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कंक संज्ञा पुं॰ [सं॰ कङ्क] [स्त्री॰ कंका, कंकी (हिं॰)]
१. एक मांसा- हारी पक्षी जिसके पंख बाणों में लगाए जाते थे । सफेद चील । काँक । उ॰—खग, कंक, काक, श्रृगाल । कट कटहि कठिन कराल ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. एक प्रकार का आम जो बहुत बड़ा होता है ।
३. यम ।
४. क्षत्रिय ।
५. युद्धिष्ठिर का उस समय का कल्पित नाम जब वे ब्राह्मण बनकर गुप्त भाव से विराट के यहाँ रहे थे ।
६. एक महारथी यादव जो वसुदेव का भाई था ।
७. कंस के एक भाई का नाम ।
८. एक देश का नाम ।—बृ॰ सं॰, पृ॰ ८३ ।
९. एक प्रकार के केतु जो वरुण देवता के पुत्र जाते हैं । विशेष—ये संख्या में ३२ हैं और इनकी आकृति बाँस की जड़ के गुच्छे की सी है । ये अशुभ माने जाते हैं ।
१०. बगाल ।
११. शरीर । उ॰—विषिकंत वीर अत्यंत बंक । जिन पिष्षि कंक अनसंक संक ।—पृ॰ रा॰, ६ ।७७ ।
१२. युद्ध । उ॰—करि कंक संक आसुरनि डर ।—पृ॰ रा॰, २ ।२८५
१३. तीक्ष्ण लोहा ।
१४. वृक्षविशेष (को॰) ।
१५. एक प्रकार का आम (को॰) ।
१६. मिथ्या ब्राह्मण । अब्राह्मण होते हुए अपने को ब्राह्मण कहनेवाला व्यक्ति (को॰) ।
१७. द्वीप ।
१८. विभागों में से एक (को॰) । यौ॰—कंकत्रोट । कंकपत्र । कंकपर्वा । कंकपृष्ठी । कंकमुख ।