कच
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कच ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. बाल (विशेषतया सिर का) । उ॰— धरि कच विरथ कीन्ह महि गिरा ।— मानस, ३ ।२३ ।
२. सूखा फोड़ा या जख्म । पपड़ी ।
३. झुंड़ ।
४. अँगरखे का पल्ला ।
५. बादल ।
३. बृहस्पति का पुत्र । वि॰ दें॰ 'देवयानी' ।
७. सुगंधवाला ।
८. कुरती का एक पेंव जिसमें एक आदिमी दूसरे की बगल में से हाथ ले जाकर उसक कधे पर चढ़ाता है और गर्दन को दबाता है । मुहा॰— कच बाँधना = किसी की बगल से हाथ ले जाकर उसके कंधे पर चढ़ाना और उसकी गरदन को दबाना ।
९. मेघ । बादल (को॰) ।
कच ^२ संज्ञा पुं॰ [अनु॰]
१. धँसने या चुभने का शब्द । जैसे,— उसने कच से काच लिया । काँटा कच से चुभ गया ।
२. कुचले जाने का शब्द ।
कच ^३ वि॰ [हिं॰ कच्चा का अल्पा॰ समास रूप] दे॰ 'कच्चा' । जैसे, — कचदिला = कच्चे दिल का । कच्ची पेंदी का । ढुल- मुल । कचलहू = रक्त का पंछा । लसिका । कचपेंदिया = (१) कच्ची पेंदीवाल । (२) ढुलमुल । जिसकी बात का ठिकाना न हो ।