कड़ी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कड़ी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कटकी, प्रा॰ कडई कड़ी]

१. जंजीर या सिकड़ी की लड़ी का एक छल्ला ।

२. छोटा छल्ला जो किसी वस्तु को अटकाने वा लटकाने के लिये लगाया जाय । जैसे, पंखा कड़ियों में लटक रहा है ।

३. लगाम । उ॰—हरि घोड़ा ब्रह्मा कड़ी वासुकि पीठि पलान । चाँद सुरूज दोउ पायड़ा । चढ़ीसी संत सुजान ।—कबीर सा॰, स॰, भा॰ १, पृ॰ २४ ।

४. गीत का एक पद ।

५. खंड । विभाग । उ॰—यही सोच में तो चौकड़ी की कड़ी बीत गई ।— श्यामा॰, पृ॰ १०९ ।

कड़ी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ काण्ड]

१. छोटी धरन । उ॰—घर की कड़ी और किवाड़ तक बेंच दी गई ।—ठेठ॰, पृ॰ ४३ । मुहा॰—कड़ीबोलना=धरन से चिटकने की सी आवाज निकलना जो रहनेवाले के लिये अशकुन समझा जाता है ।

२. भेड़ बकरी आदि चैपायों की छाती की हड्डी ।

कड़ी ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कड़ा=कठिन] कठिनाई । दिक्कत । संकट । दुःख । मुसीबत । क्रि॰ प्र॰—उठाना । झेलना ।—सहना ।

कड़ी ^४ वि॰ स्त्री॰ [हिं॰ कड़ा= कठिन] कठिन । कठोर । सख्त । मुहा॰—कड़ी धरती=(१) वह प्रदेश जहाँ के लोग हट्टे कट्टे हों । (२) भूत प्रेत के रहने की जगह । कड़ी दृष्टि वा आँख रखना=पूरी निगरानी रखना । ताक में रहना । जैसे,— देखना उस लड़के पर कड़ी आँख रखना, कहीं जाने न पावे । कड़ी दृष्टि वा आँख का होना=(१) पूरी निगरानी होना । (२) कोप का भाव रहना । जैसे,—उन दिनों समाचारपत्रों पर सरकार की कड़ी आँख थी । कड़ी सुनाना=खोटी खरी सुनाना । यौ॰—कड़ी कैद=सपरिश्रम कारागारा ।