कढ़ी

विक्षनरी से

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कढ़ी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कढ़ना=गाढ़ा होना] एक प्रकार का सालन । उ॰—दाल भात घृत कढ़ी सलोनी अरु नाना पकवान । आरोगत नृप चारि पुत्र मिलि अति आनंद निधान ।—सूर (शब्द॰) । विशेष—इसके बनाने की रीति यों है—आग पर चढ़ी हुई कड़ाही में घी, हींग, राई और हलदी की बुकनी डाल दे । जब सुगंध उड़ने लगे तब उसमें नमक, मिर्च समेत मठे में घोला हुआ बेसन छोड़ दे और मंदी आँच से पकावे । कोई कोई इसमें बेसन की पकौड़ी भी छोड़ देते हैं । यह सालन पाचक दीपक, हल्का और रुचिकर है । कफ वायु और वद्धकोष्ठ का नाश करता है । मुहा॰—कढ़ी का सा उबाल=शीघ्र ही घट जानेवाला जोश । (कढ़ी में एक ही बार उबाल आता है और शीघ्र ही दब जाता है) । कढ़ी में कोयला=(१) अच्छी वस्तु में कुछ छोटा सा दोष, (२) दाल में काला । कुछ मर्म की बात । कोई भेद । बासी कढ़ी में उबाल आना=(१) बुढ़ापे में पुनः युवावस्था की सी उमंग आना । (२) छोड़े हुए कार्य को पुनः करने के हेतु तत्पर होना ।