कति
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संस्कृत
कति (कितने)
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कति पु वि॰ [सं॰]
१. (गिनती में) कितने । उ॰—(क) मीत रही तुम्हरे नहि दारा । अब दिखाहिं षोडसहि हजारा । कहहु मीत कुल की कुशलाई । सुना सुवन कति में सुखताई ।—रघुराज (शब्द॰) । (ख) आँचर चीर धरइ हँसि हेरी । नहि नहि वचन भनब कति बेरी ।—विद्यापति॰, पृ॰ ७५ ।
२. किस कदर (तौल या माप में) ।
३. कौन उ॰—भरत कीन नृत पद पालन पै राम राय को थतिऊ । राम देव राजा नहिं दूसर इंद्र एक सुर कतिऊ ।—देवस्वामी (शब्द॰) ।
४. बहुत से । अगणित । उ॰—जाहि के उदोत लहि जगमग होत जग जोत के उमंग जामें अनु अनुमाने है । चेत के निचय जाते चेतन अचेत चय, लय के निलय जामें सकल समाने हैं । विशवाधार कति जामें स्थिति है चराचर की, ईति की न गति जामें श्रुत ि परमाने हैं । ब्रह्मनंदमय ते अनामय अभय अंब तेरे पद मेरे अवलंब ठहराने हैं । —चरण (शब्द॰) ।