कत्थ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कत्थ ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ कत्था] कसेरे की स्याही । लोहे की स्याही ।—(रँगरेज) । विशेष—१५ सेर पानी में आध सेर गुड़ या शक्कर मिलाकर घड़े में रख देते हैं । फिर उस घड़े में कुछ लोहचून छोड़कर उसे धुप में उठने के लिये रख देते हैं । थोड़े दिनों में यह उठने लगता है और मुँह पर गाज जमा है, तब यह पक्का हो जाता है और रँगाई के काम के योग्य हो जाता है । इसे लोहे की स्याही—मायल भूरे रंग का हो जाता है, तब यब पक्का हो जाता है और रँगाई के काम के योग्य हो जाता है । इसे लोहे की स्याही कहते हैं ।

कत्थ ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कथा] कथा । बात । चर्चा ।उ॰—तब बोल्यो दुजराज विचारं । सुनि ससिवृत कत्थ इक सारं ।—पृ॰ रा॰, २५ । ७६ ।