कनखी
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कनखी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कोन+ आँख]
१. पुतली को आँख के कोने पर ले जाकर ताकने की मुद्रा । इस प्रकार ताकने की क्रिया कि औरों को मालूम न हो । दूसरों की दृष्टि बचाकर देखने का ढंग । उ॰—(क) देह लग्यो ढिग गेहपति तऊ नेह निरबाहि । ढीली अँखियन ही इतै कनखियन चाहि ।— बिहारी (शब्द॰) । (ख) ललचौहैं, लजौहै, हँपोहैं चितै हित सों चित चाय बढ़ाय रही । कनखी करिके पग सों परिकै फिर सूने निकेत में जाय रही ।—भिखारीदास (शब्द॰) ।
२. आँख का इशारा । क्रि॰ प्र॰—देखना । —मारना । मुहा॰—कनखी मारना=(१) आँख से इशारा करना । (२) आँख के इशारे से किसी को कोई काम करने से रोकना । कनखियों लगना=छिपकर देखना । ताकना । भाँपना ।