सामग्री पर जाएँ

कनौती

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कनौती ^१ पु संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कान+औंती (प्रत्य॰)] दे॰ 'कनौती' । उ॰—अजौं करति उरझनि मनौ, लगी कनौती कान ।— घनानंद पृ॰ २७० ।

कनौती ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कान+ औती (प्रत्य॰)]

१. पशुओं के कान या उनके कानों की नोंक । उ॰—(क) उस दिन जो मैं हरियाली देखने को गया था, वहाँ जो मेरे सामने एक हिरनी कनौतियाँ उठाए हुए हो गई थी, उसके पीछे मैनें घोड़ा बगछुट फेंका था ।—इंशाअल्ला खाँ (शब्द॰) । (ख) चलत कनौती लई दबाई ।—शकुंतला, पृ॰ ८० । क्रि॰ प्र॰—उठाना । मुहा॰—कनौतियाँ उठाना या खड़ा करना=कान खड़ा करना । चौकन्ना होना । उ॰—कनौती खड़ी कर हमारी नाई तकै—भस्मावृत॰, पृ॰ २६ ।

२. कानों के उठाने या उठाए रखने का ढंग । जैसे,—इस घोड़े की कनौती बहुत अच्छी है । मुहा॰—कनौतियाँ बदलना=(१) कानों को खड़ा करना । (२) चौकन्ना होना । चौंककर सावधान होना ।

३. कान में पहनने की बाली । मुरकी ।