कन्दर्प
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
कंदर्प संज्ञा पुं॰ [सं॰ कंदर्प]
१. कामदेव । यौ॰—कंदर्पकूप = भग । योनि । कन्दर्पज्वर = काम का ज्वर । कंदर्पदहन = शिव । कंदर्पमथन = शिव । कंदर्पमुषल, कंदर्प- मुसल = लिंग । शिश्न । कंदर्पश्रृंखल = (१) रतिच्छद । (२) एक प्रकार का रतिबंध ।
२. संगीत में रूद्रताल के ११ भेदों में से एक ।
३. संगीत में एक प्रकार का ताल जिसमें क्रम से दो द्रुत, एक लघु और दो गुरु होते । इसके पखावज के बोल इस प्रकार हैं — तक जग धिमि जक धीकृत धीकृत s ।
४. प्रणय । प्यार (को॰) ।