कपोल

विक्षनरी से

गाल

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

कपोल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] गाल । उ॰—तोहि कपोल बाँए तिल परा । जेइँ तिल देख सो तिल तिल जरा । —जायसी ग्रं॰, पृ॰ १९२ । यौ॰—कपोलकल्पना । कपोलकल्पित ।

कपोल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰] नृत्य या नाटक में कपोल की चेष्टाएँ । विशेष—ये सात प्रकार की होती हैं—(१) कूंचित (लज्जा के समय) (२) रोमांचित (भय के समय) ।(३) कंपित (क्रोध के समय) । (४) फुल्ल (हर्ष के समय) । (५) सम (स्वाभाविक) । (६) क्षाम (कष्ट के समय) । (७) पूर्ण (गर्व या उत्साह के समय) ।