कमर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कमर ^१ संज्ञा स्त्री॰ [फा॰]

१. शरीर का मध्य़ भाग जो पेट और पीठ के नीचे पेडू और चूतर के ऊपर होता है । शरीर के बीच का घेरा जो पेट और पीठ के नीचे पडता है । कटि । यौ॰—कमरकस । कमरदोआल । कमरबंद । कमरबस्ता । मुहा॰—कमर करना = (१) घोडों का इस प्रकार कमर उछालना कि सवार का आसान उखड जाय । (२) कबूतर का कलाबाजी करना । कमर कसना = (१) किसी काम को करने के लिये तैयार होना । उद्यत होना । उतारू होना । तत्पर होना । कटिबद्ध होना । (२) चलने को तैयारी करना । गमनोद्यत होना । (३) किसी काम को करने की दृढ प्रतिज्ञा करना । संकल्प करना । इरादा करना । उ॰—दूसरा उसी को अश्लील मानकर वाद करने के लिये कमर कस लेता है ।—रस क॰ (विशेष), पृ॰ ४ । कमर खोलना = (१) कमरबंद उतारना । पटका खोलना । (२) विश्राम करना । दम लेना । सुस्ताना । ठहरना । (२) किसी काम को करने का इरादा छोड देना । संकल्प छोडना । (४) किसी उद्यम से मन हटाना । किसी उद्योग का ध्यान छोड़ देना । निश्चिंत बैठना । (५) हिम्मत करना । हतोत्साह होना । कमर टूटना = आशा टूटना । निराश होना । उत्साह का न रहना । जैसे, —जब से उनका ल़डका मरा है, तब से उसकी कमर टूट गई । कमर तोड़ना = हताश करना । निराश करना । कमर बाँधना = (१) कमर में पट्टा या दुपट्टा बाँधना । कमरबंद बाँधना । पेटी लगाना । (२) दे॰ 'कमर कसना' । उ॰—खैरख्वाही कर उसकी ख्वारी पर कमर बाँधी है ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ ३५१ । कमर बैठ जाना = दे॰ 'कमर टूटना' । कमर सीधी करना = औँठगकर विश्राम करना । लेटकर थकावट मिटाना ।

२. कुश्ती का एक पेंच जो कमर या कूल्हे से किया जाता है । क्रि॰ प्र॰—करना । मुहा॰—कमर की टँगडी = कुश्ती का एक पेंच । विशेष—जब शत्रु पीठ पर रहता है और उसका बाँया हाथ कमर पर होता है, तब खिलाडी भी अपना बाँया हाथ उसकी बगल में से ऊपर चढ़ाकर कमर पर ले जाता है और बाईं टँगडी मारते हुए चुतड़ से उठाकर उसे सामने गिराता है ।

३. किसी लंबी वस्तु के बीच का वह भाग जो पतला या धँसा हुआ हो । जैसे—कोल्हु की कमर = कोल्हू का गडारीदार मध्य भाग जिसपर कनेट और भुजेला घूमते हैं ।

४. अँगरखे या सलूके आदि का वह भाग जो कमर पर पडता है । लपेट । यौ॰—कमरपट्टी ।

कमर ^१ संज्ञा पुं॰ [अं॰ कमर] चाँद । चंद्र । चंद्रमा । उ॰— बैठे जो शाम से तेरे दर पर सहर हुई । अफसोस अय कमर कि न मुतलक खबर हुई ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰

२. पृ॰ ८५५ ।