कमाल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कमाल ^१ संज्ञा पुं॰ [अ॰] परिपूर्णता । पूरापन । मुहा॰—कमाल को पहुँचना = पूरा उतारना ।
२. निपुणता । कुशलता ।
३. अद्भुत् कर्म । अनोखा कार्य । उ॰—बेगम साहब कमाल है । अल्ला जानता है कमाल है ।—फिसाना॰, ३, पृ॰ २ । क्रि॰ प्र॰—करना ।—दिखाना ।
४. कारीगरी । सनअत ।
५. कबीर के बेटे का नाम, जो कबीरदास ही की तरह फक्कड़ साधु था । कहते हैं, जो बात कबीर कहते थे, उसका उलटा ये कहते थे । जैसे, कबीर ने कहा—मन का कहना मानिए, मन है पक्का मीत । परब्रह्म पहिचानिए, मन ही की परतीत । कमाल ने कहा—मन का कहा न मानिए, मन है पक्का चोर । लै बोरै मजझार में, देय हाथ से छोड़ । इसी बात को लेकर किसी ने कहा है कि 'बूड़ा बंस कबीर का उपजा पूत कमाल' ।
कमाल ^२ वि॰
१. पूरा । संपूर्ण । सब ।
२. सर्वोत्तम । पहूँचा हुआ ।
३. अत्यंत । बहुत । ज्यादा । उ॰—बिचारे तमाल कमाल सोच में पड़ काले पड़ गए—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ १९ ।