कराह
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कराह ^१ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ करना+आह] वह शब्द जो व्यथा के समय प्राणी के मँह से निकलता है । पीड़ा का शब्द । जैसे,—आह ! ऊह्व ! इत्यादि । उ॰—या रोगी की तरह कराह कराहकर दिन बिताते हैं ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ५५४ । मुहा॰—कराह उठना=दुःख या पीड़ा की गहरी अनुभुति प्रकट करना । अत्यधिक व्यवस्थित होना । उ॰—भरी वासना सरिता का वह, कैसा था मदमंत्त प्रवाह, प्रलय जलधि में संगम जिसका देख हृदय था उठा कराह ।—कामायनी, पृ॰ १० ।
कराह ^२ पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ कटाह, प्रा॰ कड़ाह] दे॰ 'कड़ाह' ।