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कर्ष

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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कर्ष संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. सोलह माशे का एक मान । विशेषे— प्राचीन काल में माशा पाँच रत्ती का होता था । इससे आजकल के अनुसार कर्ष दस ही माशे का ठहरेगा । वैद्यक में कहीं कहीं कर्ष दो तोले का भी मान गया है ।

२. खिचाव । घसीटना ।

३. जोताई ।

४. (लकीर आदि) खींचना । खरोंचना ।

५. बहैड़ा ।

६. प्राचीन काल का एक प्रकार का सिक्का । विशेष— यह सिक्का आजकाल के हिसाब से लगभग ४ ।) मूल्य का होता था । यह चाँदी के १९ कार्षापण के बराबर था । इसे 'हुण' भी कहते थे ।

कर्ष ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कर्ष] ताव । जोश । बढ़ाव । दे॰ ' करष' ।