कलंक
संज्ञा पुल्लिंग
प्रयोग
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वर्णक्रम सहचर
अनुवाद
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
कलंक संज्ञा पुं॰ [सं॰ कलङ्क] [वि॰ कलकित, कलंकी ]
१. दाग । धब्बा ।
२. चंद्रमा पर काला दाग । यौ॰— कलंकांक ।
३. लांछन । बदनामी ।
४. ऐब । दोष । क्रि॰ प्र॰— छूटना ।— देना । —लगना ।— लगाना । मुहा॰— कलंक चढ़ाना = कलंक या दोष लगाना । कलंक का टीका लगाना = दोष या धब्बा लगना । लांछन लगना । अपयश होना । उ॰— बूढ़ा़ आदमी हूँ, इस बुढ़ौती में कलंक का टीका लगे तो कहीं का न रहूँ । फइसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ११६ ।
५. वह कजली जो पार सिद्ध हो जाने पर बैठ जाती है । उ॰— करत न समुझत झूठ गुन सुनत होत मतिरंक । पारद प्रगट प्रपंच मय सिद्धिउँ नाउ कलंक ।— तुलसी (शब्द॰) ।
३. पारे और गंधक की कजली । उ॰— जौ लहि घरी कलंक न परा । काँच होहि नहि कंचन करा ।— जायसी (शब्द॰) ।
७. लोहे का मुरचा ।
कलंक ^२ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ कल्कि, कलंकी †] दे॰ 'कल्कि' । यौ॰— कलंक सरूप = कल्कि रूप या अवतार । उ॰— कलि कलिमल सौं कलंक सरूप ।— पृ॰ रा॰, २ । ५७१ ।