कलई

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कलई संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ कलई]

१. राँगा । यौ॰—कलई का कुश्ता= राँगे का भस्म । बंग । कलई का चूना= सफेदी के काम में आनेवाला पत्थर का चूना ।

२. राँगे का पतला लेप जो बरतन इत्यादि पर खाद्य पदार्थों को कसाव से बचाने के लिये लगाते हैं । मुलम्मा । उ॰—कलई कै काम सबै मिटि जावै ।—दरिया॰ बानी, पृ॰ ३० । यौ॰—कलईगर । क्रि॰ प्र॰—उड़ना ।—उतरना ।—करना ।—होना ।

३. वह लेप रंग चढ़ाने या चमकाने के लिये किसी वस्तु पर लगाया जाता है । जैसे,—(क) दीवार पर चूने की कलई करना । (ख) दर्पण के पीछे की कलई ।

४. बाहरी चमक दमक । दिखाव । आवरण । तड़क भड़क । ऊपरी बनावट । उ॰—साहित सत्य सुरीति गई घटि बढ़ी कुरीति कपट कलई है ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—कलई खुलना= असलियत जाहिर होना । असली भेद खुलना । वास्तविक रूप का प्रगट होना । उ॰—आई उधरि प्रीति कलई सी जैसी खाटी आमी ।—सूर (शब्द॰) । कलई न लगना= युक्ति न चलना । जैसे, —यहाँ तुम्हारी कलई न लगेगी ।

५. चूना । कली । क्रि॰ प्र॰—करना ।—पोतना ।