कलाप

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कलाप ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. समूह । झुंड । जैसे,—क्रियाकलाप । उ॰—को कवि को छबि को बरनै रचि राखनि अंग सिंगार कलापन ।—घनानंद, पृ॰ ३९ ।

२. मोर की पूँछ ।

३. पूला । मुट्ठा ।

४. बाण ।

५. तूण । तरकाश ।

६. कमरबंद । पेटी

७. करधनी ।

८. चंद्रमा ।

९. कलावा ।

१०. कातंत्र व्याकरण, जिसके विषय में कहा जाता है कि इसे कार्तिकेय ने शर्ववर्मन को पढ़ाया था ।

११. व्यपार ।

१२. वह ऋण जो मयूर के नाचने पर अर्थात वर्षा में चुकाया जाय ।

१३. एक प्राचीन गाँव जहाँ भागवत के अनुसार देवर्षि और सुदर्शन तप करते हैं । इन्हीं दोनों राजर्षियों से युगांतर में सोमवंशी और सूर्यवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति होगी ।

१४. वेद की एक शाखा ।

१५. एक अर्थ चंद्राकार अस्त्र का नाम ।

१६. एक सकर रागिनी जो बिलावल, मल्लार, कान्हाड़ और नट रागों को मिलाकर बनाई जाती है ।

१७. आभरण । जेवर । भूषण ।

१८. अर्धचंद्राकार गहना । चंदन ।

कलाप ^२पु संज्ञा पुं॰ [हिं॰ कलपना] व्यथा । दुःख । क्लेश । उ॰—अबही भेली हेकली करही करइ कलाप । कहियउ लोपाँ साँमिकउ, सुंदरि लहाँ सराप ।—ढोला॰, दू॰ ३२३ ।