कल्प
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कल्प ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. विधान । विधि । कृत्य । यौ॰—प्रथम कल्प=पहला कृत्य ।
२. वेद के प्रधान छह अंगो में से एक । एक प्रकार के वैदिक सूत्र ग्रंथ । विशेष—इसमें यज्ञादि करने का विधान है । श्रौत, गृह्या, आदि सूत्रग्रंथ इसी के अंतर्गत हैं ।
३. प्रताःकाल ।
४. वैद्यक के अनुसार रोग निवृत्ति का एक उपाय या युक्ति । जैसे, — केशकल्प । कायाकल्प ।
५. प्रकारण । एक विभाग । जैसे,— औषधकल्प । श्राद्धकल्प इत्यादि ।
६. एक प्रकार का नृत्य ।
७. काल का एक विभाग जिसे ब्रह्मा का एक दिन कहते हैं और जिसमें १४ मन्वंतर या ४३२००००००० वर्ष होते हैं । विशेष— पुराणनुसार ब्रह्मा के तीस दिनों के नाम ये हैं— (१) श्वेत (वाराह), (२) नीललोहित, (३) वामदेव, (४) रथंतर, (५) रौरव, (६) प्राण, (७) बृहत्कल्प, (८) कंदर्प, (९) सत्य या सद्य, (१०) ईशान, (११) व्यान, (१२) सारस्वत, (१३) उदान, (१४) गारूड़, ( १५) कौम (ब्रह्म की पूर्णमासी), (१६) नारसिंह, (१७) समान (१८) आग्नेय, (१९) सोम, (२०) मानव, (२१) पुमान्, (२२) वैकुंठ, (२३) लक्ष्मी, (२४) सावित्री, (२५) घोर, (२६) वाराह, (२७) वैराज, (२८) गौरी, (२९) महेश्वर, (३०) पितृ (ब्रह्मा की अमावस्या) ।
८. प्रलय (को॰) ।
९. मदिरा । शराब (को॰) ।
१०. देह को नवीन और नीरोग करने की क्रिया या उपाय (को॰) ।
११. स्वर्ग का वृक्षविशेष (को॰) । यौ॰ — कल्पवृक्ष । कल्पतरु । कल्पलता ।
कल्प ^२ वि॰
२. तुल्य । समान । जसे— ऋषिकल्प । देवकल्प । विशेष— इस अर्थ में यह समास के अंत में आता है । पाणिनि ने इसे प्रत्यय मान है ।
२. योग्य (को॰) ।
३. उचित (को॰) ।
४. शत्तिमान (को॰) ।
५. संभव (को॰) ।
६. व्याहारिक (को॰) ।