कवित्त

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कवित्त संज्ञा पुं॰ [सं॰ कवित्व]

१. कविता । काव्य । उ॰—निज कवित्त केहि लाग न नीका । —तुलसी (शब्द॰) ।

२. दंडक के अंतर्गत ३१ अक्षरों का एक वृत्त । विशेष—इसमें प्रत्येक चरण में ८, ८, ८, ७ के विराम से ३१ अक्षर होते हैं । केवल अंत में गुरु होना चाहिए, शेष वर्णो के लिये लघु गुरु का कोई नियम नहीं है । जहाँ तक हो, सम वर्ण के शब्दों का प्रयोग करें तो पाठ मधुर होता है । यदि विषम वर्ण के शब्द आएँ तो दो एक साथ हों । इसे मनहरन और घनाक्षरी भी कहते हैं । जैसे,—कूलन में, केलि में, कछारन में, कुंजन में, कयारिन में कलिन कलीन किलकंत है । कहै पझाकर परागन में, पौनहू में, पातन में, पिक में, पलासन पगंत है । द्वारे में, दिसान में दुनी में, देस देसन में, देखी दीप दीपन में, दीपत दिगंत है । बीथिन में, ब्रज में, नबेलिन में, बेलिन में, बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है । —पद्माकर ग्रं॰, पृ॰ १६१ ।

३. छप्पय छंद का एक नाम ।