कस्तूरी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कस्तूरी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] एक सुगंधित द्रव्य । विशेष—यह एक प्रकार के मृग से निकलता है जो हिमालय पर गिलगित्त से आसाम तक ८००० से १२००० फुट की ऊँचाई तक के स्थानों तथा तिब्बत और मध्य एशिया में साइबेरिया तक अर्थाक् बहुत ठंड़े स्थानों में पाया जाता है । यह मृग बहुत चंचल और छलाँग मारनेवाला होता है । डील डौल में यह साधारण कुत्ते के बराबर होता है और रात का चरता है । नर मृग की नाभि के पास एक गाँठ होती है, जिसमें भूरे रंग का चिकना सुगंधित द्रव्य संचित रहता है । यह मृग जनवरी में जोड़ा खाता है औऱ इसी संय इसकी नाभि में अधिक मात्रा से सुगधित द्रव्य मिलता है । शिकारी लोग इस मृग का शिकार कस्तूरी के लिये करते है । शिकार लेने पर इसकी नाभि काट ली जाती है, फिर शिकारी लोग इसमें रक्त आदि मिलाकर उसे सुखाते है । अच्छी से अच्छी कस्तूरी में भी मिलावट पाई जाती है । कस्तूरी का नाफा मुर्गी के अंडे के बराबर होता है । एक नाफे में लगभग आधौ छटाँक कस्तूरी निकलती है । कस्तूरी के समान सुगंधित पदार्थ कई एक अन्य जंतुओं की नाभियों से भी निकलता है । वैद्यक में तीन प्रकार की कस्तूरी मानी गई है, कपिल (सफेद), पिंगल और कृष्ण नेपाल की क्स्तूरी कपिल, कश्मीर की पिंगल और कामरूप (सिकिम, भूटान आदि) की कृष्ण होती है । कस्तुरी स्वाद में अड़वी और बहुत गरम होती है । यह वात पित्त, शीद , छर्दि आदि के लिये बहुत उपकारी मानी गई है, पर विशेषकर द्रव्यों को सुगंधित करने के काम में आती है । मुहा॰—कस्तूरी हो जाना = किसी वस्तु का बहुत महँगा हो जाना या कम मिलना । यौ॰—कस्तूरी मृग । उ॰—पागल हुई मैं अपनी ही मृदुगध से कस्तूरी मृग जैसी ।—लहर, पृ॰ ६६ ।
कस्तूरी मल्लिका संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. एक प्रकार की चमेली ।
१. कस्तूरी मृग की नाभि [को॰] ।
कस्तूरी मृग संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्रकार का हिरन जिसकी नाभि से कस्तूरी निकलती है । विशेष—यह ढाई फुट ऊँचा होता है । इसका रंग काला होता है जिसके बीच में लाल और पीली चितियाँ होती है । यह बड़ा डरपोक और निर्जनप्रिय होता है । इसकी टाँगे बहुत पतली और सीधी होती हैं जिससे कभी कभी घुटने का जोड़ बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता । यह कश्मीर, नैपाल, आसाम, तिब्बत, मध्य एशिया और साइबेरिया आदि स्थानों में होता है । सहयाद्रि पर्वत पर भी कस्तूरी मृग कभी कभी देखे गए हैं । तिब्बत के मृग की कस्तूरी अच्छी समझी जाती है ।