कहत

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कहत संज्ञा पुं॰ [अ॰ क़हत] दुर्भक्ष । अकाल । उ॰—इक तो कहत माँ सर मिटी खिलकत जो है गा सब । तेह पर टिकस बँधा है कि भैया जो है सो है ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰३, पृ॰ ८६१ । क्रि॰ प्र॰—पड़ना । यौ॰—कहतसाली = दुर्भिक्ष का समय ।

कहत परस्पर आपुस में सब कहाँ रहीं हम काहिं रई ।—सूर (शब्द॰) । (ख) स्वाँग सूधो साधु की, कुचालि कलि तें अधिक, परलोक फीकी, मति लोक रंग रई ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. युक्त । सहित । संयुक्त । उ॰—(क) बीस बिसे बलवंत हुते जो हुती द्दग केशव रूप रई जू ।—केशव (शब्द॰) । (ख) करिए युत भूषण रूप रई । मिथिलेश सुता इक स्पर्श मई ।—केशव (शब्द॰) ।

४. मिली हुई ।