कहर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कहर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ क़हूर] विपत्ति । आफत । संकट । गजब । उ॰—क्या क़हुर है यारो जिसे आ जाय बुढ़ापा । आशिक को तो अल्लाह न दिखालाये बुढ़ापा ।—नजीर (शब्द॰) । मुहा॰—कहर का = (१) कटिन । असह्यय । मात्रा से अधिक । अत्यंत । जैसे,—कहर की गरमी, कहर का पानी । (२) भयानक । डरावना । (३) बहुत बड़ा । महान् । कहर करना = (१) अत्याचार करना । जुल्म करना (२) अदभुत कर्म करना । ऐसा काम करना जिससे लोगों को विस्मय हो । अनोखा काम करना । (३) असंभव को संभव करना । अमानुष कृत्य करना । कहर टूटना = आफत आना । दैवी विपत्ति पड़ना । कहर ढाना = किसी के लिये संकट पैदा करना । संकटग्रस्त बनाना । कहर मचना = भयंकर उत्पात मचना । भयंकर उपद्रव होना ।

कहर ^२ वि॰ [अ॰ क़हूहार] अगम । अपार । घोर । भयंकर । उ॰— चिबुक सरूप समुद्र में मन जान्यो तिल नाव । तरम गयो बूड़े़उ तहाँ रूप कहर दरियाव ।—मुबारक (शब्द॰) ।

कहर नजर संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ क़हूर+ नज़र] कोप दृष्टि । उ॰—कहर नजर कूँ छाँड़ि के मिहर नजर कूँ कोजौ ।—ब्रज॰ ग्रं॰, पृ॰ ४१ ।

कहर उस वक्त कोई रुमझुमाकर और ढाता हो ।—ठंढा॰, पृ॰ २३ ।