काँध

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

काँध पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ कन्ध , प्रा॰ खंध ] कंधा । उ॰— (क) मत मतँग सब गजरहि बाँधे । निसि दिन रहहिं महाउत काँधे । जायसी ( शब्द॰) । (ख) मस्तक टीका काँध जनेऊ । कवि बियास पंडीत सहदेऊ । — जायसी (शब्द) । मुहा॰ — काँध दैना = (१) सहारा देना । उठाने में सहायता करना । किसी भारी चीज को कंधे पर उठा कर ले जाने में सहायता देना । (२) अंगीकार करना । ऊपर लेना । मानना । उ॰ — यह सो कृष्ण बलराम जस कीन चहै छर बाँध । हम विचार अस आवहिं मेरहिं दीज न काँध । जायसी (शब्द) । काँध मारना = न टिकना । धोखा देना । काम न आना । उ॰ — सजग जो नाहिं मार बल काँधा । बुध कहीये हस्ती काँबाँधा । — जायसी (शब्द॰) । काँध लगना = भारी या दूर तक बोझ ले जाने से कंधा दुखना या कल्लाना (कहारों की बोली) । काँध लेना = उठाना । ऊपर लेना । सँभालना । उ॰ — काँध समुद धस लीन्हेसि भा पाछे सब कोइ । कोइ काहु न सँभारै आपन आपन होइ । — जायसी (शब्द॰) ।

२. कोल्हू की जाठ में मुंडी के ऊपर का पतला भाग ।