काई

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

काई संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कावार]

१. जल या सीड़ में होनेवाली एक प्रकार की महीन घास या सूक्ष्म बनस्पतिजाल । विशेष—काई भिन्न आकारों और भिन्न भिन्न रंगों की होती है । चट्टान या मिट्टी पर जो कोई जमती है, वह महीन सूत के रूप में और गहरे या हलके रंग की होती है । पानी के ऊपर जो काई फैलती है, वह हल्के रंग की होती है और उसमें गोल गोल बारीक पत्तियाँ होती हैं तथा फूल भी लगते हैं । एक काई लंबी जठा के रूप में होती है, जिसे सेवार कहते हैं । क्रि॰ प्र॰—जमना ।—लगना । मुहा॰—कोई छुड़ाना = (१) मैल दूर करना । (२) दु:ख दरिद्रय दूर करना । कोई या फट जाना = तितर बितर हो जाना । छँट जाना । जैसे,—बादलों का, भीड़ का इत्यादि ।

२. एक प्रकार का हरा मुर्चा जो ताँबे, पीतल इत्यादि के बरतनों पर जम जाता है ।

३. मल । मैल । उ॰—जब दर्पन लागी काई । तब दरस कहाँ ते पाई ।—(शब्द॰) ।