काज
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]काज ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कार्य प्रा॰ कज्ज]
१. प्रयत्न जो किसी उद्देश्य की सिद्धिके लिये किया जाय । कार्य । काम । कृत्य । उ॰—(क) ज्ञानी लोभ करत नहिं कबहुँ लोभ बिगारत काज ।—सूर (शब्द॰) । (ख) घाम, धूम, नीर औ समीर मिले पाई देह ऐसो धन कैसे दूत काज भुगतावैगो ।—लक्षण (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।—कराना ।—चलना ।—चलाना ।—निकलना ।—निकालना ।—भुगतना ।—भुगताना ।—संवारना ।—सरना ।—सारना । मुहा॰—के काज = के हेतु । निमित्त । लिये । उ॰—पर स्वारथ के काज सीस आगे धरि दीजै ।—गिरधर (शब्द॰) ।
२. व्यवसाय । धंधा । पेशा । रोजगार । जैसे, (क) इस लडके को अब किसी काम काज में लगाओ । (ख) अपने घर का काज देखो ।
३. प्रयोजन । मतलब । उद्देश्य । अर्थ । उ॰—(क) रोए कंत न बहूरा तौ रोए का काज ?—जायसी (शब्द॰) । (ख) बिन काज आज महराज लाज गइ मेरी ।—(गीत), (शब्द॰) ।
४. विवाह सबंध । उ॰—यह श्यामल राजकुमार सखी, बर जानकी जोगहिं जन्म लयो । रघुराज तथा मिथिलापुर राज अकाज यही जो न काज भयो ।—रघुराज (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना ।
५. बालक अवस्था से बडे या किसी बूढे आदमी के मर जाने का भोज । काम । क्रि॰ प्र॰—करना ।—पडना ।—होना ।
काज ^२ संज्ञा पुं॰ [पुर्त॰ काजा, कोंकणी काजू] छेद जिसमें बटन डालकर फँसाया जाता है । बटन का घर । क्रि॰ प्र॰—बनाना ।