काजल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

काजल संज्ञा पुं॰ [सं॰ कज्जल] वह कालिख जो दीपक के धुएँ के जसने से किसी ठीकरे आदि पर लग जाती है और आँखों में लगाई जाती हैं । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पारना ।—लगाना । मुहा॰—काजल घुलाना, डालना, देना, सारना= (आँखों में) काजल लगाना । काजल पारना = दीपक के धुँएँ की कालिख को किसी बरतन में जमाना । काजल की ओबरी या कोठरी = ऐसा स्थान जहाँ जाने से मनुष्य दोष या कलंक से उसी प्रकार नहीं बच सकता जैसे काजल की कोठरी में जाकर काजल लगने से । दोष या कलंक का स्थान । उ॰—(क) यह मथुरा काजल की ओबरी जे आवहिं ते कारे ।—सूर (शब्द॰) । (ख) काजल की कोठरी में कैसहू सयानो जाय एक लीक काजल की लागै पै लागै री (शब्द॰) । यौ॰—काजल का तिल = काजल की छोटी बिंदी जो स्त्रियाँ शोबा के लिये गालों पर लगाती हैं ।