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काढना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

काढना क्रि॰ स॰ [सं॰ कर्षण, प्रा॰ कड्ढण]

१. किसी वस्तु के भीतर से किसी वस्तु को बहार करना । निकालना । उ॰—(क) खनि पताल पानी तहँ काढा । छीर समुद्र निकसा हुत बाढा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) मीन दीन जनु जल ते काढे ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. किसी आवरण को हटाकर कोई वस्तु प्रतक्ष्य करना । खोलकर दिखाना । जैसे,— दाँत काढना ।

३. किसी वस्तु को किसी वस्तु से अलग करना । उ॰—तब मथि काढि लिए नवनीता ।—तुलसी (शब्द॰) ।

४. लकडी, पत्थर, कपडे आदि पर बेल बूटे बनाना । उरेहना । चित्रि त्र करना । जैसे—बेल बूटा काढना, कसीदा काढना । उ॰—(क) पवँरिहि पँवरि सिंह गढि काढे । डरपहिं लोग देखि तहँ ठाढे ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) राम बदन बिलोकि मुनि ठाढा । मानहुँ चित्र माझि लिखि काढा । —तुलसी (शब्द॰) ।

५. उधार लेना । ऋण लेना । जैसे , उनके पास तो रुपया तो था ही नहीं, कही से काढकर लाए हैं । उ॰—(ग) माताहिं पिताहिं उऋण भए नीके । गुरु ऋण रहा सोच बड जी के । सो जनु हमरे माथे काढा । दिन चलि गए ब्याज बहु बाढा । तुलसी (शब्द॰) ।

६. कहाडे में से पकाकर निकालना । पकाना । छानना । जैसे,—पुरी काढना, जलेबी काढना ।

७. दूध दुहना । जैसे,— गैया का दूध अभी काढा गया है ।