कानाफूसी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कानाफूसी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ काना+अनु. 'फुस फुस'] । वह बात जो कान के पास जाकर धीरे से कही जाय । चुपके चुपके की बातचीत । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना ।

कानाफूसी करना । मुँह जोहना=आसरा ताकना । भरोसा देखना । मुँह डालना=(१) किसी पशु आदि का खाद्य पदार्थ पर मुँह चलाना ।(२) मुरगों का लड़ना या आक्रमण करना । (मुर्गबाज) । मुँह तक आना=जबान पर आना । कहा जाना । मुँह थकना=बहुत अधिक बोलने के कारण शिथिलता आना । मुँह थकना=बहुत अधिक बोलकर अपने आपको शिथिल करना । मुँह देना=किसी पशु आदि का किसी बरतन या खाद्य पदार्थ में मुँह डालना । जैसे,—इस दूध में बिल्ली मुँह दे गई है । मुँह पकड़ना=बोलने से रोकना । बोलने न देना । जैसे,—कहो न, कोई तुम्हारा मुँह पकड़ता है । मुँड पर न रखना=तनिक भी स्वाद न लेना । जरा भी न खाना । जैसे,—लड़के ने कल से एक दाना भी मुँह पर नहीं रखा । मुँह पर बात आना=(१) कुछ कहने को जी चाहना । (२) कुछ कहना । मुँह पर मोहर करना=बोलने से रोकना । कहने न देना । चुप कराना । मुँह पर लाना=मुँह से कहना । वर्णन करना । जैसे,—अपनी की हुई नेकी मुँह पर नहीं लानी चाहिए । मुँह पर हाथ रखना=बोलने से जबरदस्ती रोकना या मना करना । मुँह पसराकर दौड़ना=कुछ पाने के लालच में बहुत उत्सुक होकर आगे बढ़ना । मुँड पसारकर रह जाना=(१) परम चकित हो जाना । हक्का बक्का हो जाना । (२) लज्जित होकर रह जाना । शरमाकर रह जाना । मुँह पेट चलना=कै दस्त होना । हैजा होना । मुँह फटना=चूना आदि लगने के कारण मुँह में छोटे छोटे घाव हो जाना । मुँह फाड़कर कहना=बेहया बनकर जबाब पर लाना । निर्लज्ज होकर कहना । जैसे,—हमने उनसे मुँह फाड़कर कहा भी, पर उन्होंने कुछ ध्यान ही न दिया । मुँह फैलाना= (१) दे॰ 'मुँह बाना' । (२) अधिक लेने की इच्छा या हठ करना । जैसे,—कचहरीवाले तो जरा जरा सी बात पर मुँह फैलाते हैं । मुँह फोड़कर कहना=दे॰ 'मुँह फाड़कर कहना' । मुँह बंद करना=चुप कराना । बोलने से रोकना । मुँह बंद कर लेना=बिलकुल चुप हो जाना । कुछ न बोलना । मुँह बंद होना=चुप होना । जैसे तुम्हारा मुँह कभी बंद नहीं होता । मुँह बाँधकर बैठना=चुपचाप बैठना । कुछ न बोलना । मुँह बाँधना या बाँध देना=चुप करा देना । बोलने न देना । मुँह बाना=(१) मुँह फाड़ना या खोलना । (२) जँभाई लेना । (३) अपनी हीनता सिद्ध होने पर भी हँस पड़ना । (४) बुरी तरह से हँसना । बेहूदेपन से हँसना । मुँह बिगड़ना=(१) मुँह का स्वाद खराब होना । जैसे,—तुमने कैसा आम खिला दिया, बिलकुल मुँह बिगड़ गया । (२) किसी बात या काम पर नाराजी व्यक्त करना । (३) उपेक्षा व्यक्त करना । मुँह बिगाड़ना=मुँह का स्वाद खराब करना । मुँह भर आना= (१) मुँह में पानी भर आना । किसी चीज को लेने के लिये बहुत लालच होना । (२) मितली आना । जी मिचलाना । कै करने को जी चाहना । मुँह भरके=(१) मुँह तक । लबालब । (२) जहाँ तक इच्छा हो । जितना जी चाहे । जैसे,—(क) जो कुछ माँगना हो, मुँह भरके माँग लो । (ख) उन्होंने मुझे मुँह भरके गालियाँ दी । (३) पूरी तरह से । भली भाँति । मुँह भर बोलना=अच्छी तरह बोलना । जैसे,—वहाँ मुझसे कोई मुँह भर बोला तक नहीं । मुँह भरना=(१) रिश्वत देना । घूस देना । (२)खिलाना । भोजन कराना । (३)मुँह बंद करना । बोलने से रोकना मुँह मारना=(१) खाने को चीज में मुँह लगाना । (२) दाँत लगाना । काटना । (३) जल्दी जल्दी भोजन करना । (किसी का) मुँह माराना=(१) किसी को बोलने से रोकना । चुप करना । (२) रिश्वत देना । (३) कान काटना । बढ़कर होना । जैसे,—यह कपड़ा रेशम का मुँह मारता है । मुँह मठा करना=(१) मिठाई खिलाना । (२) देकर प्रसन्न करना । मुँह मीठा होना=(१) खाने को मिठाई मिलना । (२) प्राप्ति होना । लाभ होना । (३) मँगनी होना । (बात) मुँह से आना=कहने को जी चाहना । कहने की प्रवृत्ति होना । जैसे,—जो कुछ मुँह में आता है, कह चलते हो । मुँह में खून लहू लगना=चसका पड़ना । चाट पड़ना । जैसे,—एक दिन में तुम्हें रुपए क्या मिल गए, तुम्हारे मुँह में खून लग गया । मुँह में जबान होना=कहने की सामर्थ्य होना । बोलने की ताकत होना । मुँह में तिनका लेना=बहुत अधिक दीनता या अधिनता प्रकट करना । मुँह में पड़ना=खाय जाना । खाने के काम आना । (बात का) मुँह में पड़ना=बात का मुँह से निकलना या कहा जाना । जैसे,—जो बात तुम्हारे मुँह में पड़ी, वह सारे शहर में फैल जायगी । मुँह में पानी भर आना=(१) कोई पदार्थ प्राप्त करने के लिये बहुत लालायित होना । जैसे,—सेब का नाम सुनते ही तुम्हारे मुँह में पानी भर आता है । (२) ईर्ष्या होना । मुँह में बोलना या बात करना=इतने धीरे धीरे बोलना कि जल्दी औरों को सुनाई न दे । मुँह में लगाम देना=समझ- बुझकर बातें करना । कम और ठीक तरह से बोलना । मुँह में लगाम न होना=बोलने के समय सचेत न रहना । जो मुँह में आवे, सो कह देना । मुँह लगाना=खाना । चखना । मुँह सँभालना=व्यर्थ बकने या गालीगलौज से जबान को रोकना । जबान में लगाम देना । अपना मुँह सीना=बोलने से रुकना । मुँह से बात न निकालना । बिलकुल चुप रहना । मुह सूखना=प्यास या रोग आदि के कारण गला खुश्क होना । गले और जबान में काँटे पड़ना । मुँह से दूध की बू आना=दे॰ 'मुँह' से दूध टपकना । मुँह से दूध टपकना=बहुत ही अनजान या बालक होना । (परिहास) । जैसे,—आप इन बातों को क्यों जानने लगे; आपके मुँह से तो अभी दूध टपक रहा है । मुँह से निकालना=कहना । उच्चारण करना । जैसे,—ऐसी बात मुँह से मत निकाला करो जिससे किसी को दुःख हो । मुँह से फूटना=कहना । बोलना । (उपेक्षा या व्यंग) । जैसे,— आखिर तुम भी तो कुछ मुँह से फूटो । मुँह से फूल झड़ना= मुँह से बहुत ही सुंदर और प्रिय बातें निकलना । उ॰—रंगते ं हित की न जब उनमें रही । फूल मुँह से तब झड़े तो क्या झड़े ।—चोखे॰, पृ॰ २९ । मुँह से बात छीनना, या उचकना=किसी के कहते कहते उसकी बात कह देना । किसी के कहने से पहले ही उसका विचार या भाव प्रकट करना । किसी के मन की बात कह देना । मुँह से बात न निकलना= क्रोध या भय के मारे कुछ बोला न जाना । मुँह से शब्द न निकलना । मुँह से माप न निकलना=भय आदि के कारण सन्न हो जाना । चूँतक न करना । मुँह से लार गिरना=दे॰ 'मुँह से लार टपकना' । मुँह से लार टपकना=कोई चीज प्राप्त करने के लिये अत्यंत लालच होना । पाने के लिये परम उत्सु- कता होना । जैसे,—जहाँ तुमने कोई अच्छी पुस्तक देखी, वहाँ तुम्हारे मुँह से लार टपकने लगी । मुँह से लाल उगलना= दे॰ 'मुँह से फूल झड़ना' ।

३. मनुष्य अथवा किसी और जीव के सिर का अगला भाग जिसमें माथा, आँखें, नाक, मुँह, कान, ठोड़ी और गाल आदि अंग होते हैं । चेहरा । मुहा॰—अपना सा मुँह लेकर रह जाना=लज्जित होकर रह जाना । काम न होने कारण शरमिंहा होना । इतना सा मुँह निकल आना=दे॰ 'मुँह उतरना' । मुँह अँधेरे=प्रभात के समय । तड़के । (किसी के) मुँह आना=किसी के सामने होकर कोई कठोर बचन कहना । किसी से हुज्जत करना । उ॰—जो आता है खोजी को देखकर कहाकहा लगाता है । कोई मुसकराता है कोई मुँह आता है ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १८२ । मुँह उजला होना=प्रतिष्ठा रह जाना । बात रह जाना । इज्जत न जाना । मुँह उजाले या मुँह उठे=प्रभात के समय । तड़के । बहुत सबेरे । मुँह उठना=किसी ओर चलने की प्रवृत्ति होना । जैसे,—हमारा क्या, जिधर मुँह उठा, उधर ही चल देंगे । मुँह उठाए चले जाना=बेधड़क, चले जाना । बिना रुके हुए चले जाना । मुँह उठाकर कहना=बिना सोचे समझे कहना । जो मुँह में आवे सो कहना । मुँह उठाकर चलना=नीचे की ओर बिना देखे हुऐ, केवल ऊपर की और मुँह करके चलना । अंधाधुंध चलना । मुँह उतरना=(१) दुर्बलता के कारण सुस्त होना । चेहरे पर रौनक न रह जाना । (२) विफलता, हानि या दुःख आदि के कारण उदास होना । विवर्णता होना । चेहरे का तेज जाता रहना । (अपना) मुँह काला करना=(१) व्यभिचार करना । अनुचित संभोग करना । (२) अपनी बदनामी करना । (दूसरे का) मुँह काला करना= उपेक्षा से हटाना । त्यागना । जैसे,—मुँह काला करो, क्यों इसे अपने पास रखे हो ? मुँह की खाना=(१) थप्पड़ खाना । तमाचा खाना । (२) बेइज्जत होना । दुर्दशा कराना । (३) मुँहतोड़ उत्तर सुनना । (४) लज्जित होना । शरमिंदा होना । (५) धोखा खाना । चूक जाना । (६) बुरी तरह परास्त होना । उ॰—कयामत कती सफाई थी । मुँह चढ़ा मुँह की खाई सामने गया और शामत आई ।—फिसाना॰, भा॰ १, पृ॰ ७ । मुँह के बल गिरना=(१) ठोकर खाना । धोखा खाना । उ॰— इतना भारी भरकम आदमी और जरी से इशारें में तड़ से मुँह के बल गिर गए ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ २२ । (२) बिना सोचे समझे किसी ओर प्रवृत्त होना । कोई वस्तु प्राप्त करने के लिये लपकना । मुँह खोलना=चेहरे पर से घूँघट आदि हटाना । चेहरे के आगे का परदा हटाना । मुँह चढ़ाना=दे॰ 'मुँह फुलाना' । मुँह चाटना=खुशामद करना । ठकुरसुहाती कहना । लल्लोपत्ती करना । मुँह छिपाना=लज्जा के मारे सामने न होना । मुँह झटक जाना=रोग या दुर्बलता आदि के कारण चेहरा उतर जाना । मुँह झुलसना=(१) मुँह में आग लगाना । मुँह फूँकना । (स्त्रि॰ गाली) ।

२. दाह कर्म करना । मुरदे को जलाना । (उपेक्षा॰) । (३) कुछ ले देकर दूर करना । (अपना) मुँह टेढ़ा करना=मुँह फुलाना । अप्रसन्नता या असतोष प्रकट करना । (दूसरे का) मुँह टेढ़ा करना= दे॰ 'मुँह तोड़ना' । मुँह ढाँकना=किसी के मरने पर उसके लिये शोक करना या रोना । (मुसल॰) । (किसी का) मुँह ताकना=(१) किसी का मुखापेक्षी होना । किसी के मुँह की और, कुछ पाने आदि की आशा से देखना । उ॰—जो रहे ताकते हमारा मुँह हम उन्हीं की न ताक में बेंठे ।—चोखे॰, पृ॰ २७ । (२) टक लगाकर देखना । (३) विवश होकर देखना । (४) चकित होकर देखना । आश्चर्य से देखना । मुँह ताकना= आकर्मण्य होकर चुपचाप बैठे रहना । जैसे,—सब लोग अपने अपने रुपए ले आए, और आप मुँह ताकते रहे । मुँह तोड़ या तौड़कर जवाब देना=पूरा पूरा जवाब देना । ऐसा जवाब देना कि कोई बोल ही न सके । मुँह थामना=बोलने से रोकना । बालने न देना । चुप करना या रखना । उ॰—पर यदि कोई कहे कि यह सब कुछ नही; यह एक सांप्रदायिक सिद्धांत का काव्य के ढंग पर स्वाकार मात्र है; तो हम उसका मुँह नही थाम सकते ।—चिंता॰, भा॰ २, पृ॰ ६९ । मुँह थुथाना=मुँह का थूथुन की तरह बनाना । मुँह फुलाना । क्रोध या अप्रसन्नता प्रकट करना । मुँह दिखाना=सामने आना । उ॰—इमान जामिन की दोहाई जिस तरह पीठ दिखाते हो उसी तरह मुँह भी दिखाओ ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ २७० । मुँह देखकर उठना=प्रातःकाल सोकर उठने के समय किसी को सामने पाना । जैसे,—आज न जान किसका मुँह देखकर उठे थे कि दन भर भाजन हो न मिला । विशेष—प्रायः लाग मानते है कि प्रातःकाल सोकर उठने के समय शुभ या अशुभ आदमी का मुँह देखने का फल दिन भर मिला करता है । मुँह देखकर बात करना=खुशामद करना । मुँह देखकर जीना=(किसी के) भरोस से जीना । (किसी का) आसरा ताकना । उ॰—जो हमारा मुँह देखकर जीते हैं, हम उन्हीं को निगल रहे हैं ।—चुभते॰ (दो दो॰), पृ॰ ४ । (किसी का) मुँह देखना=(१) सामना करना । किसी के सामने जाना । किसी के साथ देखादेखी या साक्षात्कार करना । (२) चकित होकर देखना । (अपना) मुँह देखना=दर्पण में अपने मुँ ह का प्रतिबिंब देखना । (किसी का) मुँह देखकर=(१) किसी के प्रेम में लगकर । किसी के प्रम के आसरे । जैसे,—पति मर गया, पर बच्चों का मुँह देखकर धीरज धरो । (२)किसी को संतुष्ट या प्रसन्न करने के विचार से । जैसे, तुम तो उनका मुँह देखकर बात करते हो । मुँह धो रखना=किसी पदार्थ की प्राप्ति से निराश हो जाना । आशा न रखना । (व्यंग्य) । जैसे,—आपको यह पुस्तक मिल चुकी; मुँह धो रखिए । मुँह न देखना=किसी से बहुत घृणा करना । किसी से देखा- देखी तक न करना । न मिलना जुलना । जैसे,—मैं तो उस दिन से उनका मुँह नहीं देखता । मुँह न फेरना या मोड़ना= (१) दृढ़तापूर्वत संमुख ठहरे रहना । पीछे न हटना । (२) विमुख न होना । अस्वीकार न करना । मुँह निकल आना= रोग या दुर्बलता आदि के कारण चेहरे का तेज जाता रहना । चेहरा उतर जाना । मुँह पर=सामने । प्रत्यक्ष । रूबरू । जैसे,—(क) तुम तो मुँह पर झूठ बोलते हो । (ख) वह मुँह पर खुशामद करता है और पीठ पीछे गालियाँ देता है । मुँह पर कहना=आमने सामने कहना । उ॰—बात लगती बेकहों को बेधड़क, हम कहेंगे औ न क्यों मुँह पर कहें ।—चुभते॰, पृ॰ १७ । मुँह पर चढ़ना=लड़ने या प्रतियोगिता करने के लिये सामने आना । मुकाबला करना । मुँह पर थूकना= बहुत अधिक अप्रतिष्ठित और लज्जित करना । मुँह पर नाक न होना=शरम न होना । लज्जा न होना । निर्लज्ज होना । जैसे,—तुम्हारे मुँह पर नाक तो है ही नहीं, तुमसे कोई क्या बात करे । मुँह पर पानी फिर जाना=चेहरे पर तेज आना । प्रसन्नवदन होना । मुँह पर फेंकना या फेंक मारना=बहुत अप्रसन्न होकर किसी को कोई चीज देना । मुँह पर या मुँह से बरसना=आकृति से प्रकट होना । चेहरे से जाहिर होना । जैसे,— पाजीपन तो तुम्हारे मुँह पर बरस रहा है । मुँह पर बसंत फूलना या खिलना=(१) चेहरा पीला पड़ जाना । (२) उदास या भयभीत हो जाना । मुँह पर मारना=दे॰ 'मुँह पर फेंकना' । मुँह दर मुँह कहना=मुँह पर कहना । सामने कहना । मुँह पर मुरदनी फिरना या छाना=(१) मृत्यु के चिह्न प्रकट होना । अंतिम समय समीप आना । (२) चेहरा पीला पड़ना । (३)भयभीत, लज्जित या उदास होना । मुँह पर रखना=किसी के सामने ही कोई बात कह देना । पूरा पूरा उत्तर देना । मुँह पर हवाई या छूटना=भय या लज्जा आदि के कारण चेहरा पीला पड़ जाना । जैसे,—मुझे देखते ही उनके मुँह पर हवाई उड़ने लगी । (किसी का) मुँह पाना=प्रवृत्ति को अपने अनुकूल देखना । रुख पाना । मुँह पीट लेना=बहुत अधिक क्रोध या दुःख की अवस्था में दोनों हाथों से अपने मुँह पर आघात करना । मुँह फक होना= चेहरे का रंग उड़ जाना । विवर्णता होना । भय या आशंका से चेहरा पीला पड़ जाना । मुँह फिरना या फिर जाना=(१) मुँह का डेढ़ा, कुरूप या खराब हो जाना । जैसे,—एक थप्पड़ दूँगा, मुँह फिर जायगा । (२) लकवे का रोग हो जाना । (३) सामना करने के योग्य न रह जाना । सामने से हट या भाग जाना । जैसे,—घंटे भर की लड़ाई में ही शत्रु का मुँह फिर गया । मुँह फुलाना या फुलाकर बैठना=आकृति से असंतोष या अप्रसन्नता प्रकट करना । जैसे,—तुम तो जरा सी बात पर मुँह फुलाकर बैठ जाते हो । मुँह फूँकना=(१) मुँह में आग लगाना । मुँह झुलसाना । (स्त्रि॰ गाली) जैसे,—ऐसे नौकर का तो मुँह फूँक देना चाहिए । (२) दाहकर्म करना । मुरदे को जलाना । (उपेक्षा॰) । (३) कुछ दे लेकर दूर करना । हटाना । मुँह फूलना=अप्रसन्नता या असंतोष होना । नाराजगी होना । जैसे,—मैं कुछ कहूँगा, तो अभी तुम्हारा मुँह फूल जायगा । (किसी का) मुँह फेरना=(१) परास्त करना । दबा लेना । (अपना) मुँह फेरना=(१) किसी की ओर पीठ करना । (२) उपेक्षा प्रकट करना । (३) किसी ओर से अपना मन हटा लेना । मुँह बंद कर देना=कहने पर प्रतिबंध लगा देना । उ॰—बंद होगा न देखना सुनना । आप मुँह क्यों न बंद कर देंगें ।—चुभते॰, पृ॰ १८ । मुँह बनाना या बन जाना= ऐसी आकृति होना जिससे असंतोष या अप्रसन्नता प्रकट हो । जैसे,—मेरी बात सुनते ही उनका मुँह बन गया । मुँह बनवाना=किसी कार्य अथवा प्राप्ति के योग्य अपनी आकृति बनवाया । (व्यंग्य), जैसे,—पहले आप अपना मुँह बनवा लीजिए, तब यह कोट माँगिएगा । मुँह बनाना=ऐसी आकृति बनाना जिससे असंतोष या अप्रसन्नता प्रकट हो । विशेष—इसके साथ संयो॰ क्रि॰ लेना या बैठना आदि का भी प्रयोग होता है । मुहँ बिगड़ना=चेहरे की आकृति खराब होना । मुँह बिगाड़ना=चेहरा खराब करना । उ॰—हो गए पर बिगाड़ बिगड़े का । मुँह बिगड़ना बिगाड़ना देखा ।—चोखे॰, पृ॰ ५५ । (दूसरे का) मुँह बिगाड़ना=असंतोष या अप्रसन्नता प्रकट करना । मुँह बुरा बनाना=असंतोष या अप्रसन्नता प्रकट करना । मुँह भर बोलना=स्नेह से बोलना । उ॰—आपका मुँह ताकते ही रह गए । आप तो मुँह भर कभी बोले नहीं ।—चोखे॰, पृ॰ ५४ । मुँह में कालिख पुतना या लगना= बहुत अधिक बदनाम होना । कलंक लगना । मुँह माँगी मुराद पाना=इच्छित वस्तु प्राप्त करना । उ॰—हुमायूँ बागवाँ दिल ही दिल में हँस रहे थे कि मुँहमाँगी मुराद पाई । -फिसना॰, भा॰ ३, पृ॰ १११ । मुँह में छाती देना=स्तन से दूध पिलाना । उ॰—मोह में माती हुई मा के सिवा, कौन मुँह में दे कभी छाती सकी ।—चोखे॰, पृ॰ ६ । (अपना) मुँह मोड़ना=किसी ओर से प्रवृत्ति हटा लेना । ध्यान न देना । दे॰ 'अपना मुँह फेरना' । उ॰—सच्चा हितैषी उनसे मुँह मोड़ गया ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ ६१ । (३) इनकार करना । अस्वीकृत करना । जैसे,—हम कभी किसी बात से मुँह नहीं मोड़ने । दूसरे का मुँह मोड़ना= परास्त करना । हराना । जैसे,—थोड़ी ही देर में सैनिकों ने डाकुओं का मुँह मोड़ दिया । (किसी के) मुँह लगना= (१) किसी के सिर चढ़ना । किसी के सामाने बढ़ बढ़क र बातें करना । उद्दंड बनना । (२) बातें करना । जवाब सवाल करना । जैसे,—सबके मुँह लगना ठीक नहीं । मुँह लगना=सिर चढ़ाना । उद्दंड बनना । जैसे,—तुमने भी लड़कों को मुँह लगा रखा है । मुँह लपेटकर पड़ना=(१) बहुत ही दुःखी होकर पड़ा रहना । उ॰—क्यों दुखी की लपेट में आवे । क्यों पड़े मुँह लपेटकर कोई ।—चोखे॰, पृ॰ ३० । (२) निरुद्यम होना । आलसी होना । अलसाना । मुँह लाल करना=(१) मुँह पर थप्पड़ आदि मारकर उसे सुजा देना । (२)पात तंबाकू से आदर सत्कार करना । मुँह लाल होना= मारे क्रोध के चेहरा तमतमाना । आकृति से बहुत अधिक क्रोध प्रकट होना । मुँह सँभालना=बातचीत में मर्यादा और शिष्टता का ध्यान रखना । उ॰—पाँव तो देख भालकर डाले । मुँह सँभाले सँभालकर बोले । -चोखे॰, पृ॰ ३० । मुँह सफेद होना=भय या लज्जा से चेहरे का रंग उड़ जाना । उदासी छा जाना । मुँह सिकोड़ना=आकृति से अप्रसन्नता या असंतोष प्रकट करना । नाक भौ चढ़ाना । (अपना) मुँह सुजाना=आकृति से असंतोष या अप्रसन्नता प्रकट करना । नाराजी जाहिर करना । (किसी का) मुँह सुजाना=थप्पड़ मार मारकर मुँह लाल करना । मुँह सुख होना=क्रोध के मारे चेहरे तमतमाना । गुस्से सेचेहरा लाल होना । मुँह सूखना=भय या लज्जा आदि से चेहरे का तेज जाता रहना ।

४. किसी पदार्थ के ऊपरी भाग का विवर जो आकार आदि में मुँह से मिलता जुलता हो । जैसे,—इस बरतन का मुँह बाँधकर रख दो ।

५. सूराख । छिद । छद्र । जैसे,— दो दिन में इस फोड़े में मुँह हो जायगा ।

६. मुलाहजा । मुरव्वत । लिहाज । जैसे,—हमें तो खाली तुम्हारा मुँह है; उससे तो हम कभी बात ही नहीं करते । यौ॰—मुँह मुलाहजा । मुहा॰—मुँह करना=मुलाहजा करना । ख्याल करना । जैसे,— धनवानों का तो सभी लोग मुँह करते हैं, पर गरीबों को कोई नहीं पूछता । मुँह देखे का=जो हार्दिक न हो, केवल ऊपरी या दिखौआ हो । जो केवल सामना होने पर हो । मुलाहजे का । मुरव्वत का । जैसे, (क) आपका प्रेम तो मुँह देखे का है । (ख) ये सारी बातें मुँह देखे की हैं । मुँह पर जाना=किसी का ध्यान करना । लिहाज करना । जैसे,—मैं तुम्हारे मुँह पर जाता हूँ, नहीं तो अभी इसकी गत बनाकर रख देता । मुँह मुलाहजे का=जान पहचना का । परिचित ।मुँह रखना=किसी का लिहाज रखना । ध्यान रखना । जैसे,— आप इतनी दूर से चलकर आए हैं, आपका मुँह रखो ।

७. योग्यता । सामर्थ्य । शक्ति । जैसे,—तुम्हारा मुँह नहीं है कि तुम उसके सामने जाओ । मुहा॰—(अपना) मुँह तो देखो=पहले यह तो देखो कि इस योग्य हो या नहीं । (व्यंग्य) । मुँह देखकर बात करना= किसी के साथ उसकी योग्यता के अनुसार बात करना ।

८. साहस । हिम्मत । मुहा॰—मुँह पड़ना=साहस होना । हिम्मत होना । जैसे,—उनके सामने कुछ कहने का भी तो मुँह नहीं पड़ता ।

९. ऊपरी भाग । उपर की सतह या किनारा । मुहा॰—मुँह तक आना या भरना=पूरी तरह से भर जाना । लबालब होना । जैसे—तालाब में पानी मुँह तक आ गया है ।