कार्य
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कार्य वि॰ [सं॰] परिश्रमी । सेहवती । कर्मशील [को॰] ।
कार्य ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. काम । व्यापार । धंधा ।
२. वह जो कारण से उत्पन्न हो । वह जो कारण का विकार हो अथवा जिसे लक्ष्य करके कर्ता क्रिया करे । जो कारण के बिना न हो ।
३. फल । परिणाम । प्रयोजन ।
४. ऋण आदि संबंधी विवाद । रुपए पैसे का झगड़ा ।
५. ज्योतिष में जन्मलग्न से दसवाँ स्थान ।
६. आरोग्यता ।
७. धार्मिक कृत्य या कर्म (को॰) ।
८. अभाव । आवश्यकता । अवसर ।
१. नाटक का अंतिम फल (को॰) ।
१०. करने योग्य या करणीय कर्म (को॰) ।
११. आचरण (को॰) ।
१२. किसी कारण का अनिवार्य फल या निष्पित्ति (विलोम कारण) (को॰) ।
१३. मूल उदगम (को) ।
१४. शरीर । देह (को॰) ।
कार्य ^२ वि॰
१. करने योग्य ।
२. बनाने योग्य [को॰] ।
कार्य । उ॰—जानती इतेक तो न ठानती अठान ठान भूलि पथ प्रेम के न एक पग डारती ।—हनुमान (शब्द॰) ।
३. चेष्टा । मुद्रा । अंगास्थिति या संचालन का ढब । अंदाज । उ॰— पाछे बंक चितै मधुरै हँसि घात किए उलटे सुठान सों ।—सूर (शब्द॰) ।
४. द्दढ़ निश्चय । द्दढ़ संकल्प । पक्का इरादा । उ॰—क्यों निंर्दोषियों को हलाकान करेन की ठान ठानते हो ?—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ ४६७ । मुहा॰—ठान ठानना = द्दढ़ निश्चय करना । पक्का इरादा कराना ।