कालचक्र
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कालचक्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] समय का चक्र । समय का हेरफेर । जमाने की गर्दिश । उ॰—कालचक्र में हो दबे, आज तुम राजकुँवर ।—अपरा, पृ॰ ११ । विशेष—दिन रात आदि के बराबर आते जाते रहने से काल की उपमा चक्र से देते आए हैं । मत्स्यपुराण में पुर्वह्न, मध्याह्नन, अपराह्न को कालचक्र की नाभि, संवत्सर, परिबत्सर आदि को आरे और छह ऋतुओं को नेमि लिखा है । जैन लोग भी उत्सपिर्णी और अवसर्पिणी काल में छह छह आरे मानते हैं ।
२. उनता काल जितना एक उत्सार्पिणी और अवसर्पिणी में लगता है ।
३. एक अस्त्र का नाम ।
४. काल का पहिया (को॰) ।
५. भाग्यचक्र । भाग्य का हेरफेर (को॰) ।
९. सूर्य (को॰) ।