किंनी ^२ पु क्रि॰ वि॰ दे॰ 'किन' उ॰—तुम । सब रहो री हौं ही उत्तर दैहों चले किनि जाउ ढोटा वाइ बाबरी गाँऊ—पोद्दार अभि॰ ग्रं॰, पृ॰ १९० ।