कीलक
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कीलक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. खूँटी । कील ।
२. गौणों और भैसों के बाँधने का खूँटा ।
३. तंत्र के अनुसार एक देवता ।
४. किसी मंत्र का मध्य भाग ।
५. वह मंत्र जिससे किसी अन्य मंत्र की शक्ति या उसका प्रभव नष्ट कर दिया जाय ।
६. ज्योतिष में प्रभव आदि ६० वर्ष में से ४२ वर्ष । विशेष— इस वर्ष अमंगलों का नाश होकर सब जगह मंगल और सुख होता है ।
७. एक स्तव जो सप्तशती पाठ करने के समय किया जाता हैं ।
८. केतु विशेष । यौ॰— कील्कन्याय ।
कीलक ^२ पु॰ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ किलक] दे॰ 'किलक' । उ॰— श्यामाशत्कि श्याम सुदर जू कीलक सब थल मोहै ।— श्यामा॰ पृ॰ १६३ ।