कुआँ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कुआँ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कूप, प्रा॰ कुव] पानी निकालने के लिए पृथ्वी में खोदा हुआ एक गहरा गड्ढा । कूप । विशेष — यह भीतर पानी की तह तक चला जाता है । इसके किनारे को लोग ईट या पत्थर से बाँधते हैं । इसके घेरे को जो पहले खोदा जाता है, भगाड़ या ढाल कहते । भगाड़ खोदे जाने पर उसमें लकड़ी के पहिए के आकार का चक्र रखते हैं जिसे निवार या जमवट कहते हैं । इसी निवार के ऊपर ईटों की जोड़ी होती है जिसे कोठी करते हैं । किसी किसी कोठी में दो निवार लगाए जाते हैं । दूसरा निवार पहले निवार के पाँच छ हाथ ऊपर रहता है और दोनों के बीच में पतली लकड़ियों की पटरियाँ लगाई जातीं हैं जिन्हे कैंची कहते हैं । कोठी तैयार हो जाने पर उसके बीच को मिट्टी निकाली जाती है जिससे कोठी नीचे धँसती जाती है और कुआँ गहरा होता जाता है । इस क्रिया को कोठी गलाना कहते हैं । इस प्रकार कई बार कोठी गलाने पर भीतर पानी का स्त्रोत मिलता हैं । पतले स्त्रोत की 'सोती' और मोटे स्त्रोत को 'मूसला' कहते हैं । कुएँ के ऊपर मुँह पर जो चबूतरा बनाया जाता हैं, वह 'जगत' कहलाता है कुएँ के मुँह पर के चौकठे को 'जाल' कहते हैं । पर्या॰—कुप । अंधु । प्रहि । उदपान । अवट । कोट्टार । कात । कर्त । वज्र । काट । खात । अवत । क्रिवि । सूद । उत्स । श्रृष्यदात् । कारोतरात् । कुशेष । केवट ।