कुट
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कुट ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ कुटी]
१. घर । गृह ।
२. कोट । गढ़ ।
३. कलश ।
४. वह घन जिससे पत्थर तोड़ा जाता है ।
५. वृक्ष ।
६. पर्वत ।
कुट ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कुष्ट, प्रा॰ कुठ्ठ] एक बड़ी मोटी झाड़ी जिसकी जड़ सुंगधित होती है । विशेष—कश्मीर के किनारे की ढालू पहाड़ियों पर ८००० से ९००० फुट की ऊँचाई तक यह होती है । चनाब और झेलम के ऊँचे कछारों में भी यह मिलती है । कश्मीर में इसकी जड़ खोदकर बहुत इकट्ठी की जाती है और छोटे छोटे टुकड़े में काटकर बाहर कलकत्ते और बंबई भेजी जाती है, जहाँ से इसकी चलान चीन और योरप को होती है । कश्मीर में इसका संग्रह राज्य की और से होता है । प्रत्येक काश्तकर को कुछ जड़ कर के रूप में देती पड़ती है । इसकी सुगंध बड़ी मनोहर होती है और चीन में इसे धूप की तरह जलाते हैं । इससे बाल भी मला जाता है । इसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इससे सफेद बाल काले हो जाते हैं । काश्मीर में शाल के व्यापारी इसे दुशालों की तह में उन्हें कीड़ों से बचाने के लिये रखते हैं । पहले लोग असली कश्मीरी शाल की पहचान इसी की महक से करते थे । वैद्यक में यह गरम, कफ और वात- नाशक, दाद, खुजली आदि को दूर करनेवाली और शुक्रजनक मानी गई है । हकीम लोग कुट तीन प्रकार की मानते हैं । एक मीठी, तौल में हलकी, सुगंधित और पीलापन लिये सफेद होती है । दूसरी कड़वी, कुछ करौछे रंग की और बिना महक की होती है । तीसरी लाल रंग की और स्वाद में फीकी होती है और उसमें घीक्वार की सी महक होती है । पर्या॰—कुष्ट । व्याधि । परिभाव्य । व्याप्थ । पाकल । उत्पल । कदाख्य । दुष्ट । आप्य । जरण । कौवेर । भासुर । गदाह्व । कुठिक । काकल । नीरुज । आमय । रुजा । गद । पारिबद्रक कुत्सित । पावन ।
कुट संज्ञा पुं॰ [सं॰ कुट = कूटना]
१. कुटा हुआ टुक़ड़ा । यौ॰—कसकुट । तिलकुट । तिसकुट । मुहा॰—कुटकरना= मैत्री खंडित करना । बालकों का दाँतों पर नाखून खुट से बुलाकर मित्रता तोड़ना । कुट्टी करना ।
२. फूटा और सड़ाया हुआ कागज । कुट्टी ।