कुटकी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कुटकी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कुटका]

१. एक पौधा जिसकी जड़ शीतल प्रकृति की होती है और दवा के काम में आती है । विशेष—यह पश्चिमी और पूरबी घाटों में तथा अन्य पहाड़ी प्रदेशों मे ं भी होता है । इसकी पत्तियाँ लंबी लंबी कटावदार और ऊपर को चौड़ी होती है । इसकी जड़ में गोल गोल बेड़ौल गाँठे पड़ते है जो औषध के काम में आती है । स्वाद में कुटकी कड़वी, चरपरी और रूखी होती है । प्रकृति इसकी शीतल है । यह भेदक, कफनाशक, तथा पित्तज्वर, श्वास, कोढ़ और कृमि को दूर करनेवाली मानी जाती है । इसमें दीपक और मादक गुण भी होता है । यह २ रत्ती से ४ रत्ती तक खाई जा सकती है । इसे काली कुटकी भी कहते हैं । पर्या॰—तिक्ता । काडैरुहा । अरिष्टा । चक्रांगी । शकुलादिनी । कटुका । मत्स्यपित्ता । नकुलासादिनी । शतपर्वा । द्विजांगी । मलभेदिनी । कृष्णा । कृष्णोमेदा । कृष्णभेदी । महौषधि । कटवी । अंजनी कटु । वामघ्नी । चित्रांगी ।

२. एक जड़ी जो शिमले से काश्मीर तक पाँच से दस हदार फुट की ऊँचाई पर पहाड़ों में होती है । यह जिनशियन नाम की अंग्रेजी दवा के स्थान में व्यवहृत होती है । यह बल औऱ वीर्यवर्धक होती है ।

कुटकी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰]

१. एक छोटी चिड़िया । विशेष—यह भारत के घने जंगलों में होती है और ऋतु के अनुसार रंग बदलती है । यह पाँच इँच लंबी होती है और तीन चार अंडे देती है । यह कभी जोड़े में और कभी फुट रहती है । बोली इसकी कड़ी होती है । यह पत्ते, फूल, बाल, कपास आदि गूँथकर घोंसला बनाती है ।

२. बादिए के पेंच का वह भाग, जिसमें लोहे की कीलों या छड़ों में पेंच बनाया जाता है ।

कुटकी † ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कुटका = छोटा टुकड़ा] कंगनी । चेना ।

कुटकी ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कटु+कीट] एक उड़नेवाला कीड़ा जो कुत्ते, बिल्ली आदि पशुओं के शरीर के रोयों में घुसा रहता है और उन्हें काटता है ।