कुढ़ना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कुढ़ना क्रि॰ अ॰ [सं॰ क्रुंद्ध, या क्रुष्ट, प्रा॰ कुडढ़]

१. भीतर ही भीतर क्रोध करना । मन ही मन खीझना या चिढ़ना । बुरा मानना ।

२. डाह करना । जलना । उ॰—चंद्रगुप्त से उसके भाई लोग बुरा मानते थए और महानंद अपने सब पुत्रों का पक्ष करके इससे कुढ़ता था ।—हरिश्चंद्र (शब्द॰) ।

३. भीतर ही भीतर दुखी होना । मसोसना । उ॰—श्रीकृष्णचंद इतना कह पाताल पुरी कौ गए कि माता तुम अब मत कुढ़ो, मै अपने भाइयों को अभी जाय ले आता हूँ ।—लल्लु । (शब्द॰) ।

४. दूसरे के कष्ट को देख भीतर ही भीतर मसोसकर रह जाना ।