कृत्य

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कृत्य ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. कर्त्तव्य कर्म । वेदविहित आवश्यक कार्य । विशेष—बौद्धों के मत से ज्ञानानुसार कृत्य प्रकार के होते है । यथा—(१) प्रतिसंधि, (२) भवांग, (३) आवर्जन, (४) दर्शन, (५) श्रवण (६) घ्राण, (७) शयन, (८) स्पर्श, (९ ) संप्रतिच्छन, (१०) संतीर्ण, (११) उत्थान, (९ २) गमन, (१३) तदालंबन और (१४) च्युति, इसके अतिरिक्त काला- नुसार उन्होंने इसके पाँच और भेद किए है—(१) पूर्व भाक्त कृत्य, (२) पश्चात्भाक्त कृत्य, (३) प्रथमयाम कृत्य, (४)ट मध्यमयाम कृत्य और (५) पश्चिमयाम कृत्य जैनियों के अनुसार कृत्य छह प्रकार के होते है । —(१) दिनकृत्य (२) रात्रिकृत्य, (३) पर्वकत्य, (४) चातुमास्यि कृत्य, (५) संवत्सर कृत्य और (९ ) जन्मकृत्य ।

२. भूत, प्रेत, य़क्षादि जिनका पूजन अमिचार के लिये होता है ।

३. कार्य । व्यवसाय । कर्म (को॰) ।

४. प्रयोंजन । लक्ष्य । उद्देश्य । कारण (को॰) ।

५. कर्मवाच्य कृदंत के चार प्रत्यय अनोय, एलिम, तव्य और य (को॰) ।