कोइल
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कोइल ^१ संज्ञा॰ स्त्री॰ [सं॰ कुण्ड़ली] १, गोल छेददार लकड़ी जो मक्खन निकालने के समय दूध के मटके या मेहँड़े के मुँह पर रखी जाती है और जिसके छेद में मथानी । इसलिये डाल दी जाती है कि जिसमें वह सीधी घुमे और उससे मटका न फूटे ।
२. करघे में की वह लकड़ी जो ढरकी के बगल में लगी रहती है ।—(जुलाहा) ।
कोइल ^२ संज्ञा॰ स्त्री॰ [हि॰ कोलना] दे॰ 'कोइलारी' ।
कोइल ^३ संज्ञा॰ स्त्री॰ [सं॰ कोकिल] दे॰ 'कोयल' 'कोकिल' । उ॰— या ठोढ़ी सरि कों जबै सफल भप बैराय । तबहिं रसालनि को गई कोइल दाग लगाय ।—राम॰, धर्म॰, पृ॰, २३४ ।