कोना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कोना संज्ञा पुं॰ [सं॰ कोण ]

१. एक बिंदु पर मिलती हुई ऐसी दो रेखाओं के बिच का अतर जो मिलकर एक रेखा नहीं हो जाती । अंतराल । गोशा ।

२. नुकीला किनारा या छोर । नुकीला सिरा । जैसे — उसके हाथ में शीशे का कोना धँस गया । मुहा॰ — कोना निकालना = किनारा बनाना । कोना मारना या छाँटना = दै॰ 'कोर मारना ' ।

३. छोर का वह स्थान जहाँ लंबाई चौडाई मिलती हो । खूँट । जैसे,— दुपट्टे का कोना । मुहा॰ —कोना दबना = दै॰ 'कोर दबना ' ।

४. कोठरी या घर के अंदर की वह सँकरी जगह जहाँ लंबाई चौडाई की दीवारें मिलती हैं । गोशा । मुहा॰— कोना अँतरा = घर के अंदर का ऐसा स्थान जहाँ दृष्टि जल्दी न पड़ती हो । छिपा स्थान । जैसे,— (क) उसने सारा कोना अँतरा ढूँढ़ डाला । (ख) छडी़ कहीं कोने अँतरे में पडी़ होगी ।

५. एकांत और छिपा हुआ स्थान । जैसे, — कोने में बैठकर गाली दैना वीरता नहीं है । उ॰— पर नारी का राँचना, ज्यों लह— सुन की खान । कोने बैठ के खाइए, परगट होय निदान ।— कबीर (शब्द॰) । मुहा॰ — कोना झाँकना = किसी बात के पड़ने पर बय या लज्जा से जी चुराना । किसी बात मे बचने का उपाय करना । — जैसे— तुम कहने को तो सब कुछ कहते हो पर पीछे कोना झाकने लगते हो ।

६. चार भागों में से एक । चौथाई । चहारुम । — (दलाल) । मुहा॰— कोने से= चार आने रुपए के हिसाब से ।