कोल्हू

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कोल्हू संज्ञा पुं॰ [हिं॰ कूल्हा या देश॰] तेल या ऊख पेरने का यंत्र जो कुछ कुछ डमरू के आकार का बहुत बड़ा होता है । विशेष—यह प्रायः पत्थर का और कभी कभी लकड़ी या लोहे का भी होता है । इसके बीच में थोड़ा सा खोखला स्थान होंता है जिसे हाँड़ी या कूँड़ी कहते है । इसके पेंदे में एक नाली होती है जिसमें से तेल या रस निकलकर बाहर की ओर रखे हुए बरतन में गिरता है । कूँड़ी के मध्य में लकड़ी का मोटा और ऊँचा लट्ठा लगा रहता है जिसे जाठ कहते हैं । यह जाठ नंधे हुए बैल या बैलों के चक्कर काटने से घूमती हैं, जिसके कारण कूँड़ी में डाली हुई चीज पर उसकी दाब पड़ती है । क्रि॰ प्र॰—पेरना ।—चलाना । मुहा॰—कोल्हू काटकर मोंगरी बनाना = कोई छोटी चीज बनाने के लिये बड़ी चीज नष्ट करना । थोड़े से लाभ के लिये बहुत सी हानि करना । कोल्हू का बैल =(१) बहुत कठन परिश्रम करनेवाला । दिन रात काम करनेवाला । (२) एक ही जगह बार बार चक्कर लगानेवाला । कोल्हू में डालकर पेरना = बहुत अधिक कष्ट पहुँचाकर प्राण लेना । बहुत दुःख देकर जान से मारना । इससे पहले के समय में तेल निकाला जाता था। अब यह लगभग विलुप्त हो गये हैं।