कौडा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कौडा संज्ञा पुं॰ [सं॰ कपर्दक, प्रा॰ कवद्दह , कवड्डह] बडी कौडी । उ॰— कौडा आँसू बूँद करि साँकर बरुनी सजल । कीन्हें बदन निर्मुद, दृग मलंग डारे रहैं । — बिहारी ( शब्द॰) । २ धन । पूँजी । उ॰ — गुरु किन वाट नाहिं कौडा विन हाट नाहिं । सुंदर॰ ग्रं॰, भा॰ २,पृ॰ ३८८ ।

कौडा ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कुण्डक] जाडे के दिनों में तापने के लिये किसी गड्ढे में खर, पतवार फूँककर जलाई हुई आग । अलाव । उ॰— जाडे के दिनों में किसी गरम कौडें के चारों और प्यार बिछा बिछा के अपने परिजनों के साथ युवती और वृद्धा , बालक और बालिका, युवा और वृद्ध सबके सब बैठ कथा कह दिन बिताते हैं । — श्यामा॰, पृ ॰४४ ।

कौडा ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कदल] एक प्रकार का जंगली प्याज । कोंचिडा फर्फार ।

कौडा ^४ संज्ञा पुं॰ [देश॰] बूई नाम का पौधा जिसे जलाकर सज्जी खार निकालते हैं । वि॰ दे॰ 'बुई' ।

कौडा ^५ वि॰ [सं॰ कटु] दे॰ 'कडुआ' । उ॰— भोरे भोरे तन करै, बंडै करि कुरबाण । मिट्ठा कौडा ना लगै दादु तौहू साण ।— दादु॰, पृ॰ ६५ ।