कौडी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कौडी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कपर्दिका, प्रा॰ कवड्डिआ]
१. समुद्र का एक कीडा जो घोघे की तरह एक अस्थिकोष के अंदर रहता है । वराटिका । विशेष— यह अस्थिकोश उभडा हुआ और चमकीला होता है तथा इसके नीचे बडा लंबा पतला छेद हैता है, जिसके दोनों किनारे पर दाँत होते हैं । खुले मुँह को आवश्यकतानुसार बंद करने के लिये उसपर ढक्कन नहीं होता । छेद के बाहर इसका सिर रहता है, जिसमें दो कोने निकले रहते हैं जो स्पर्शद्रिय का काम देते हैं । कौडिया भारत महासागर में लंका, मलाया, स्याम, सिंहल मालद्वीप आदि के पास इकट्ठी की जाती हैं । राजनिघंटु में कौडियाँ पाँच प्रकार की बतलाई गई हैं— ( क) सिंही, जो सुनहले रंग की होती है । (ख) व्याघ्री जो धुमले रंग की होती है (ग) मृगो, जिसकी पीठ पीली और पेट सफेद हैता है (घ) हँसी जो बिलकुल सफेद होती है । और (च) विंदता, जो बहुत बडी नहीं होती । द्रव्य रुप में कौडी का व्यवहार भारत जीन आदि तेशों में बहुत प्राचीन काल से होता रहा है । वाजयसनेपी संहिता में इसका उल्लेख आया है । भास्कराचार्य ने लिलावती में इसके मुल्य का विवरण दिया है । पैसे के आधे को अधेला, चौथाई को टुकडा या छदाम और अष्टमाँश को दमडी कहते थे । एक पैसे में प्राय: ८० कौडियां या २५ दाम माने जाते थे ।
३. दाम की एक दमडी , छ दाम का एक टुकडा और १२ । । दाम का एक अधेला माना जाता था ।
कौडी गुडगुड संज्ञा पुं॰ [हिं॰ कौडी + गुडगुड] लड कों का एक खेल । विशेष — बहुत से लडके दो ओर पंक्तियों में आमने सामने बैठते हैं । इन दोनों पंक्तियों के दो सरदार होते हैं । पैसा या जुता आदि उछालकर चित पट से इस बात का निश्चय किया जाता है कि पहले किस पंक्ति से खेल आरंभ होगा । जिस पंक्ति से खेल आरभ होता है, उसका सरदार अँजुली में धुल भर लेता है जिसके अँदर कौडी छिपी होती है । सरदार थोडी थोडी धूल अपनी पंक्ति के सब लडकों के हाथ में डाल आता है । फिर दूसरी पंक्तीवाले बूझते हैं कि धूल के साथ कौडी किस लडके के हाथ में गई है । यदि वे ठिक बूझ गए तो जिसके हाथ में कौडी रहती है, उसे चपत लगाते हैं ।
कौडी जगनमगन संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'कौडी गुडगुड' ।
कौडी जूडा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ कौडी +जूडा ] एक प्रकार का गहना जिसे स्त्रियाँ सिर पर पहनती हैं ।