कौर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कौर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कवल]

१. उतना भोजन, जितना एक बार मुँह में डाला जाय । ग्रास । कुस्सा । निवाला । उ॰— राम नाम छाँडि जो भरोसो करे और को । तुलसी परोसो त्यागि माँगै कुर कौर को । — तुलसी ( शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰— उठाना ।— खाना । मुहा॰— मुँह का कौर छिन जाना = जीविका का संकट होना रोजी छिन जाना । उ॰— कौर मुँह का क्यों न तब छिन जायगा । जायँगी पच क्यों न प्यारी थालियाँ । — चुभते॰, पृ॰ ३९ ।मुँह का कौर छीनना =देखते देखते किसी का अंश दबा बैठना । कौर करना = खा जाना । ग्रास बनाना । उ॰— किनारे की सब कमलिनी क्रम से उखाड उखाड कौर कर गए ।—श्याम॰, पृ॰ ११३ ।

२. उताना अन्न जितना एक बार चक्की में पीसने के लिये डाला जाय । क्रि॰ प्र॰— डालना ।

कौर ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का छोटा, फैलनेवाला झाड जो उत्तर भारत की पहाडी और पथरीली भूमि में होता है ।