क्षय
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]क्षय संज्ञा पुं॰ [सं॰] [भाव॰ क्षयित्व]
१. धीरे धीरे घटना । ह्रास । अपचय ।
२. प्रलय । कल्पांत ।
३. नाश ।
४. घर । मकान ।
५. निवासस्थान । रहने की जगह ।
६. यक्ष्मा नामक रोग । क्षयी ।
७. रोग । बीमारी ।
८. अंत । समाप्ति ।
९. नीति शास्त्र के अनुसार राजा के ऋषि, बस्ती, दुर्ग, सेतु, हस्तिबंधन, खान, करग्रहण और सेना के समूह (अष्टवर्ग) का ह्रास या नाश ।
१०. साठ संवत्सरों में से अंतिम संवत्सर का नाम । यह वर्ष बहुत भयानक और उपद्रवकारी होता है । उ॰—इस बारहवें युग के पिछले वर्ष का नाम क्षय है । यह क्षयकारक है । —बृहत्, पृ॰ ५४ ।
११. ज्योतिष में एक प्रकार का मास जो शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर अमा— वस्या तक रहता है । विशेष—इस मास में दो संक्रांतियाँ होती हैं और इससे तीन मास पहले और तीन मास पीछे एक एक अधिमास पड़ता है । कार्तिक, अगहन और पूस के अतिरिक्त और कोई महीना क्षयमास नहीं हो सकता । सिद्धांत शिरोमणि के अनुसार यह मास प्रायः १४१ वर्ष के अंतर पर पड़ता है । इस मास में किसी प्रकार का मंगलकार्य करना निषिद्ध है । कोई कोई इसे अंहंस्यति भी कहते हैं ।
१२. जाति । वंश (को॰) ।
१३. यमलोक । यसेयति (को॰) ।
१४. गणित में ऋण का चिह्न या राशि (को॰) ।
१५. हाथी के घुटने का एक भाग (को॰) ।