क्षात्र
क्षात्रधर्म (क्षत्रिय धर्म) का अर्थ होता है "क्षत्रिय धर्म" या "राजपूत धर्म"। यह उस नैतिकता और जिम्मेदारी का वर्णन करता है जो एक क्षत्रिय को अपने कर्तव्यों के प्रति निभानी होती है। इसमें राज्य की रक्षा, न्याय व्यवस्था बनाए रखना, और समाज की भलाई के लिए कार्य करना शामिल होता है।
क्षात्रकुल (क्षत्रिय कुल) का अर्थ होता है "क्षत्रिय कुल" या "क्षत्रिय परिवार" (सूर्यवंश , पृथुवंश, चंद्रवंश , नागवंश)। यह शब्द उन परिवारों या वंशों को इंगित करता है जो क्षत्रिय जाति से संबंधित होते हैं। क्षात्रकुल की परंपराएँ और सामाजिक स्थिति भारतीय समाज में विशेष महत्व रखती हैं और इन्हें सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त है।
क्षत्रिय का इतिहास
भारत में प्राचीन काल से ही क्षत्रिय जाति का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वेदों और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में क्षत्रिय योद्धाओं और राजाओं का वर्णन मिलता है। रामायण में भगवान राम और महाभारत में पांडव और कौरव जैसे प्रसिद्ध क्षत्रियों के जीवन और कार्यों का विस्तार से उल्लेख है।
राजा पृथु और राजा भरत के शासनकाल ने भारतीय इतिहास और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उनके द्वारा स्थापित क्षात्रधर्म आज भी प्रेरणादायक है और हमें उनके महान कार्यों की याद दिलाता है। इनके जीवन और उपलब्धियों से हमें यह सीखने को मिलता है कि सच्चे क्षत्रिय वही होते हैं जो धर्म, न्याय और प्रजा की सेवा में अपना जीवन अर्पित करते हैं।
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]क्षात्र
[सम्पादन]क्षात्र/क्षत्रिय संबंधी क्षत्रियों का जैसे—क्षात्रतेज, क्षात्रधर्म, क्षात्रवीर,क्षात्रगुण, आदि ।
क्षत्रियत्व । क्षात्रसूर्य । क्षात्रधर्म ।