खण्ड

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प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

खंड संज्ञा पुं॰ [सं॰ खण्ड]

१. भाग । टुकड़ा । हिस्सा । उ॰— प्रभु दोउ चाप खंड महि डारे ।—मानस, १ । २६२ । मुहा॰—खंड खंड करना = चकनाचुर करना । चुकड़े टुकड़े करना ।

२. ग्रंथ का विभाग या अश ।

३. देश । वर्ष । जैसे—भरतखंड (पौराणिक भूगोल में एक एक द्विप के अंतर्गत नौ नौ य ा सात सात खंड माने गए हैं) । नौ की संख्या ।

५. गणित में समीकरण की एक क्रिया ।

६. रत्नों का एक दोष जों प्रायः मानिक में होता है ।

७. खाँड । चीनी ।

८. काला नमक ।

९. दिशा । दिक् । उ॰—चारहु खंड भानु अस तपा । जेहि की दृष्टि रैन ससि छिपा ।—जायसी (शब्द॰) ।

१०. समूह । उ॰—तहँ सज्ञत उदभट भट विकट सटसट परत खल खंड में ।—पद्माकर ग्रं॰, पृ॰ २८५ ।

११. परशुराम । उ॰—संग्राम पंड कैरवै कि खंड बाँण सेणियं ।—राज रू॰, पृ॰ ६० ।

१२. मंजिल । मरातिब । उ॰—नव नव खंड के महल बानए । सोना केरा कलस चढ़ाए ।—कबीर॰ सा॰, पृ॰ ५४३ ।

खंड ^२ वि॰

१. खंडित । अपूर्ण । उ॰—अखंड साहब का नाम और सब खंड है ।—कबीर श॰, पृ॰ १२१ ।

२. छोटा । लघु ।

३. विकलांग । दोषयुक्त [को॰] ।

खंड ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ खङ्ग] खाँड़ा । उ॰—करै शंभु खंड बरिवंड चड दै कै जलधि उमंड को घमंड ब्रह्मंड मंड ।—गोपाल (शब्द॰) ।