खरक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

खरक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ खड़क = स्थाणु]

१. जंगलों आदि में लकड़ीयों के खंभे गाड़कर और उनमें आड़ी बल्लियाँ बाँधकर घेरा और छाया हुआ स्थान जिनमें गौएँ रखी जाती हैं । इसे कहीं कहीं ड़ाढा भी कहते हैं । उ॰— बछरा सखी एक भग्यो खरका तें महूँ तोहि दौरि पछेरौ कियो ।—सेवक (शब्द॰) ।

२. पशुओं के चरने का स्थान ।

३. चीरे हप पतले बाँसों को बाँधकर बनाया हुआ किवाड़ा जिसे गरीब लोग अपने घरों में लगाते हैं । टट्टर ।

खरक ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'खटक' या 'खड़क' ।