खस

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

खस ^२ वि॰ [सं॰ क्षम, प्रा खम]

१. समर्थ शक्तिमान् ।

२. झुका हुआ ।

३. वक्र । टेढ़ा ।

खस ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वर्तमान गढ़वाल और उसके उत्तरवर्ती प्रांत का प्राचीन नाम ।

२. इस प्रदेश में रहनेवाली एक प्राचीन जाति । उ॰—स्वपच सवर खस जनम जड़ पाँवर कोल किरता । राम कहत पावन परम होत भुवन विख्यात ।— तुलसी (शब्द॰) । विशेष—व्रात्य क्षत्रिय से उत्पन्न इस जाति का वर्णन महाभारत और राजतरंगिणी में आया है । इस जाति के वंशज अब तक नेपाल और किस्तवाड़ (काश्मीर) में इसी नाम से विख्यात है और अपने आपको क्षत्रिय बतलाते हैं । ये लोग बड़े परिश्रमी और साहसी तथा प्राय: सैनिक होते हैं । इन्ही को खासिया भी कहते हैं ।

३. खजुली (को॰) ।

खस ^२ संज्ञा स्त्री॰ [फा॰ खस]

१. गाँडर नामक घास की प्रसिद्ध सुंगंधित जड़ । विशेष—यह गास, भारत, बर्मा और लंका के मैदानों और छोटी पहाड़ियों पर विशेषत: नदियों और तालों के किनारे उत्पन्न होती है । गरमी के दिनों में कमरे आदि ठंढा रखने के लिये दरवाजों और खिड़कियों में इसकी टट्टिया लगाई जाती हैं । कहीं कही इसकी पंखिया और टोकरिया भी बनती है । इसका इत्र भी बहुत अच्छा बनता है और अधिक दामों में बिकता है । अनेक प्रकार की सुगंधिया बनाने के लिये विलायत में भी इसकी बहुत खपत होती है ।

२. सूखी घास (को॰) ।