खाम
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]खाम ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ खामना]
१. चिट्ठी का लिफाफा । उ॰— बाँचत न कोऊ अब वैसई रहत खाम, युवती सकल जानि गई गति याकी हैं ।—द्विजदेव (शब्द॰) ।
२. संधि । जोड़ । टाँका । क्रि॰ प्र॰—लगाना । विशेष-कहीं कहीं यह शब्द स्त्रीलिंग भी बोला या लिखा जाता है ।
खाम ^२ † संज्ञा पुं॰ [हिं॰ खमा]
१. खंभा । स्तंभ । उ॰—क्लेस भव के दे अबै तू भजन को दृढ़ खाम ।—ब्रज॰ ग्रं॰, पृ॰ १६० ।
२. जहाज का मस्तूल (लश॰) ।
खाम ^३पु † वि॰ [सं॰ क्षाम] घटने या क्षीण होनेवाला । उ॰— नाम रुप अरु लीला धाम । रहत नित्य ये पड़त न खामा ।— विश्राम (शब्द॰) ।
खाम ^४ वि॰ [फा॰ खाम]
१. जो पका न हो । कच्चा ।
२. जो दृढ़ या पुष्ट न हो ।
३. जिसे तजुरबा न हो । अनुभवहीन ।
४. बुरा । उ॰—खुदा को समझना बड़ा काम है जिते का उसका के आगे खाम है ।—दक्खिनी॰, पृ॰ २९१ ।
खाम खयाल संज्ञा पुं॰ [फा़॰ खामखयाल] व्यर्थ के विचार । गलत विचार । उ॰—खाम खयाल करि दूरि दिवाना ।— कबीर श॰, पृ॰ ३० ।
खाम खयाली संज्ञा स्त्री॰ [फा॰ खामख़याली] गलत धारणा । व्यर्थ विचार । उ॰—देखती कला विधि के विधान में भी त्रुटियाँ, कल्पना सत्य ही खाम खयाली होती हैं ।—नील॰, पृ॰ ६० ।