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खुमी

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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खुमी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ कुमा] पत्र—पुष्प—रहित क्षुद्र उदभिद की एक जाति जिसके अंतर्गत भूफोड़, ढिंगरी, कुकुरमुत्ता, गगनधूल आदि हैं । विशेष—इस जाति के पौधों में हरे कोशाणु नहीं होते, जिनके द्वारा और पौधे मिट्टी आदि निरवयव द्रव्यों को अपने शरीर के धातु रूप में परिवर्तित कर सकते हैं । इसी से खुमी जाती के पौधे, सफेद या मटमैले होते हैं और अपना आहार दूसरे पौधों या जंतुओं के जीवित या मृत शरीर से प्राप्त करते हैं । बरसात में भींगी, सड़ी लकड़ियों पर एक प्रकार की गोल और छोटी खुमी निकलती है, जिसे 'कठफूल' कहते हैं । यह प्रायः विषैली होती है । खुमी के शरीरकोश की बनावट और पौधों की सी नहीं होती । इसके कोशण सूत की तरह लंबे लंबे होते हैं; पर किसी किसी खुमी के कोशणु गोल भी होते हैं । खुमी के दो मुख्य भेद हैं—एक वह जो दूसरे जीवित पौधों के रस से पलती हैं; और दूसरी वह जो सड़े गले या मृत शरीर से आहारसंग्रह करती हैं । पहले प्रकार की खुमी गेरुई आदि के रूप में अनाज के पौधों में देखी जाती है । दूसरे प्रकार की खुमी भूँफोड़ कठफूल, कुकुरमुत्ता आदि हैं । खुमी के अधिकांश पौधे अंगुल डेढ़ अंगुल से लेकर आठ आठ, दस दस अंगुल तक के दिखाई पड़ते हैं । ये छूने में कोमल और छाते के आकार के होते हैं । छतरी, की बनावट पर्तदार होती है । खुमी के कई भेद गूदेदार और खाने लायक होते हैं । जैसे, भूँफोड़, ढिंगरी (पंजाब) आदि । कई दुर्गंधयुक्त और विषैले होते हैं । जैसे,—कुकुरमुत्ता, कठफूल आदि । वैंद्यक में खुमी विषैली और धर्मशास्त्र में अभक्ष्य मानी गई हैं । खाने योग्य खुमी (भूँफोड़) खूब गुदेदार और सफेद होती है । उसके डंठल में गोल गोल छल्ले से पड़े रहते हैं, और उसमें किसी प्रकार की गंध नहीं होती । खुमी बरसात में बहुत उपजती है । पर्या॰—छत्राक । कवक । शिलींध्र । उच्छिलींध्र । कुकुरमुत्ता । गगनधूल । रामछाता ।

खुमी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ खुभना]

१. वह सोने की कील जिसे लोग दाँतो में जड़वाते हैं । धातु का बना हुआ वह पोला छल्ला जो हाथी के दाँत पर चढ़ाया जाता है । उ॰—गति गयंद कुच कुंभ किकणी मनहु घट झहनावै । मोतिन हार जलाजल मानी खुमी दत झलकावै ।—सूर (शब्द॰) ।